(१९-२४/०४/२०२४, ०९-११/०६/२०२४)
11 जून 2024
यूँ सताया ना करो
(१९-२४/०४/२०२४, ०९-११/०६/२०२४)
06 जून 2024
गम नही
पर जिंदगी की बाग में उम्मीद के गुल कम नही
बस सब्र रख लो.. वक्त से बढिया कोई मरहम नही
सुइयाँ घडी की भी घडी भर इक जगह कायम नही
गर जी गए, कर लो जशन.. मिट भी गए तो गम नही
07 मई 2024
आते रहेंगे रूबरू
15 अप्रैल 2024
रैन बेचैन है
नींद की गोद में खो गया है शहर
रैन गाती रहे लोरियों की लडी
चाँद की दासताँ है रखी अनकही
जुगनुओं की तरह ख्वाब उडता फिरे
रैन बेचैन है.. चाँद निकला नही || अंतरा-२ ||
(०५-१५/०४/२०२४)
25 नवंबर 2023
सुनी मीठी गज़ल मैंने
01 अक्टूबर 2023
खिला है आसमाँ में चाँद
06 अप्रैल 2023
याद आते हो
15 अक्टूबर 2022
अलविदा
बस यही तक था सफर, था बस यही तक रासता
बस यही तक साथ था अपना, यही तक वासता
रब ने लिखी थी खुद कभी..
तकदीर ने फिर भी मिटा दी खामखा
जनमों-जनम की खूबसूरत दासताँ
दो दूर के पहियें कभी लाए थे संग संजोग ने
चलेगी सवारी उम्रभर ये, राह को भी था पता
कुछ भी न थे शिकवें-गिलें, फिर भी बिछ गए फासलें
लगती न अपनों की नजर, तो खूब खिलता राबता
जो इस जनम ना फूल बन पायी मोहब्बत की कली
अगले जनम मिलकर सजाएंगे दिलों का गुलसिताँ
आवाज पहुचेगी न अब, जितनी भी दू दिल से सदा
तो अब निकलता हूँ सखी, लेकर अधूरा अलविदा
- अनामिक
(०६-१५/१०/२०२२)
09 अक्टूबर 2022
ख्वाबों के बुलबुलें
साबुन के बुलबुलों के जैसे ख्वाब फुलाकर उडा रहा हूँ
इस पल है महफूज, न जाने कल का मंजर क्या होगा !..
बदमाश वक्त की हवा किस दिशा, किस रफ्तार बहेगी कल ?!..
इन अल्हड मेरे ख्वाबों का अंजान मुकद्दर क्या होगा ?!..
वो बस दिखने में नाजुक हैं, पर लड लेंगे पर्बत से भी
वो शोख हवा पे सवार होकर उड भी लेंगे अंबर तक
वो चकमा देंगे तूफानों को, पार करेंगे सागर तक
पर किस्मत जब बनकर आए खूँखार बवंडर, क्या होगा ?!..
इन अल्हड मेरे ख्वाबों का अंजान मुकद्दर क्या होगा ?!..
- अनामिक
(१९/०३/२०२२ - ०९/१०/२०२२)
22 सितंबर 2022
समझदार सपनें
नादान हुआ करते थे जो.. बेफिक्र जिया करते थे जो
अफसानों के आसमान में खुलकर उडान भरते थे जो
पर जिंदगी के गुरू से कैसा पाठ न जाने सुन बैठे
वो अल्हड, चंचल सपनें मेरे समझदार क्यों बन बैठे ?!..
बेवक्त आँख के दरवाजे पे अब वो दस्तक देते नही
बेवजह रात की गलियारों में नींदों को छेडते नही
वो उडते उडते शायद गलती से वास्तव के नगर गए
और देख नजारा सच्चाई का सहम गए, फिर बदल गए
वो उस दिन से खामोश हुए यूँ, गीत न इक भी गा पाए
अरमानों के गुलशन में नया न इक भी बीज लगा पाए
कमजोर नही थे बिलकुल भी वो, आखिर तक वो डटे रहे
पर कौन बच सका है किस्मत से ? सपनें सारे बिखर गए
- अनामिक
(१८-२३/०९/२०२२)
14 जुलाई 2022
ऐ चाँद.. रुक जा
ऐ चाँद.. रुक जा और थोडी देर तू
ना छोडकर जा रोशनी की डोर तू
बेरंग अंधेरे आसमाँ का नूर तू
ऐ चाँद.. रुक जा और थोडी देर तू
ज्यादा नही, थोडा सही
बस और चंद पल तो ठहर
जब तक बुलाए ना सहर
तेरी चाँदनी के नूर से सवार लू दिल का नगर
या फिर ठहर कुछ और वक्त
कुछ दिन, महीनें, या बरस
या इक बडी लंबी सदी
या उम्र, सारी जिंदगी
तुझ संग लगेगा इक जनम भी जैसे इक प्यारी घडी
तू वक्त जितना भी रुके, कम ही लगे.. काफी नही
ऐ चाँद.. रुक भी जा हमेशा के लिए.. मत जा कही
रह जा यही
- अनामिक
(२२/०३/२०२२ - १४/०७/२०२२)
22 जून 2022
जरा मैं, तू जरा मिलके
जरा मैं, तू जरा मिलके
करे हम इक नयी शुरुआत
ख्वाबों के नगर में इक सुहाना घर बनाएंगे
उमंगो की तरंगों से
भरेंगे रंग फिजा में यूँ
भरी पतझड में भी गुलजार सा मंजर बनाएंगे
जरा मैं, तू जरा मिलके सुहाना घर बनाएंगे || मुखडा ||
लबों से कुछ न कहना तू
जरा बस मुस्कुरा देना
सभी बातें तेरे दिल की बखूबी जान लूंगा मैं
निगाहों के झरोखों से
खुशी तेरी पढूंगा मैं
गमों की छींट भी तुझपे कभी गिरने न दूंगा मैं
बिखर जाऊ कभी मैं राह में, तू ही सहारा हो
तू ही मंजधार में मेरे सफीने का किनारा हो
न कुछ मेरा, न तेरा हो
मिले जो भी, हमारा हो
चलेंगे हर कदम संग, जिंदगी सुंदर बनाएंगे
कयामत तक हमारा साथ हो,
तो क्या नही मुमकिन ?
की रेगिस्तान को भी प्रीत का सागर बनाएंगे
जरा मैं, तू जरा मिलके सुहाना घर बनाएंगे || अंतरा ||
- अनामिक
(१३/०८/२०२१ - २२/०६/२०२२)
20 जून 2022
मेरी निगाहों से
खुदको कभी तू देख ले
15 जून 2022
भगदौड काफी हो गयी
भगदौड काफी हो गयी.. दिल कह रहा अब, बस हुआ
जो धुंद सुहानी थी फिजा में, बन गयी है अब धुआ
चलकर हजारों मील भी आगे दोराहे हैं नये
दौलत समय की खर्च दी बस एक सपनें के लिए
करती रही लहरें समय की वार, दिल ने सब सहा
बरसों सबर का बांध था मजबूत, पर अब ढह रहा
दिखता रहा आगे जजीरा, नाव बहती ही रही
इतने समंदर तर लिए.. की अब छोर की ख्वाइश नही
मैं इस जनम तक क्या, कयामत तक भी कर लू इंतजार
पर बेकदर इन महफिलों में ठहरने का दिल नही
अब सोचता हूँ, छोड दू तकदीर पे ही फैसलें
वरना न हासिल कर सकू, ऐसी कोई मंजिल नही
- अनामिक
(११-१५/०६/२०२२)
10 जून 2022
चाँद आखिर चाँद है
दुआओं सा, इबादत सा
न जिसके रूप में कोई मिलावट
चाँद आखिर चाँद है !
पूरा कभी, आधा कभी
होंगे, न होंगे दाग भी
फिर भी है बेहद खूबसूरत
चाँद आखिर चाँद है !
साज की, श्रृंगार की,
बाहरी दिखावे की नही है चाँद को कोई जरूरत
चाँद आखिर चाँद है !
माना, कठिन बिलकुल नही, बनना सितारों सा, मगर..
बनना जरूरी भी तो नही, अपना अलगपन छोडकर
गर चाँद भी झिलमिल सितारों की नदी में बह गया
तो चाँद में और बाकियों में फर्क ही क्या रह गया ?
है ये गुजारिश चाँद से,
"बदलाव की जद्दोजहद में
खो न दे अपनी नजाकत"
चाँद आखिर चाँद है !
भीनी सी शीतल चाँदनी ही चाँद की पहचान है
है चाँद तो सबसे जुदा.. उसमें ही उसकी शान है
क्यों की..
चाँद आखिर चाँद है !
- अनामिक
(०७/०५/२०१९ - १०/०६/२०२२)
01 जून 2022
पुन्हा गाठ व्हावी
सावलीच्या मनीही उन्हाचे कवडसे
तरी मौन हळवे हवेतून वाहे
कुणा ना कळे, व्यक्त व्हावे कसे
उन्हाने पुन्हा सावलीला स्मरावे
पुन्हा सावलीने उन्हा साद द्यावी
नभाने करावी निळीशार किमया
उन्हा-सावलीची पुन्हा गाठ व्हावी || धृ ||
किती त्या झळा तप्त भाळी उन्हाच्या
किती गारठा सावलीच्या तळाशी
किती एकटे ते परीघात अपुल्या
अता मात्र जवळीक व्हावी जराशी
उन्हा-सावलीची पुन्हा गाठ व्हावी || १ ||
किती लोटले ते हिवाळे, उन्हाळे
किती दाटले भावनांचे उमाळे
किती आर्त गाणी दडवली ऋतूंनी
किती साठले ते नभी मेघ काळे
सुरांना, सरींना खुली वाट व्हावी
उन्हा-सावलीची पुन्हा गाठ व्हावी || २ ||
(३१/०३/२०२२ - ०१/०६/२०२२)
24 मई 2022
है याद वो दिन आज भी
29 अप्रैल 2022
ये वक्त है, या है नदी ?!
किस ओर बहती जा रही ?..
रफ्तार इसकी तेज़ इतनी, है समझ के भी परे
जाने कहाँ ले जा रही ?..
क्या कुछ बहा ले जा रही
कैसे उभर पाए भला, इक बार जो इसमें गिरे ?
ये वक्त है, या है नदी ?! || धृ ||
चंचल पलों की रेत
मुठ्ठी से फिसलती जा रही
पलखें झपकते ही यहाँ
सदियाँ बदलती जा रही
ये वक्त क्यों माने न मद्धम जिंदगी के दायरें ?
ये वक्त है, या है नदी ?! || १ ||
तैरे भला तो किस दिशा ?
ढूँढे जज़ीरा कौनसा ?
इस पार, या उस पार का, थामे किनारा कौनसा ?
सीखे कहाँ मंझधार में से लौटने के पैंतरें ?
ये वक्त है, या है नदी ?! || २ ||
चलते रहे बरसों मुसाफिर जिंदगी की रहगुज़र
पर खींच ले भीतर उन्हें जब वक्त का गहरा भवर
सीधे सयाने शख्स भी बन जाते हैं तब बावरे
ये वक्त है, या है नदी ?! || ३ ||
- अनामिक
(२३/०३/२०२२ - २९/०४/२०२२)
17 अप्रैल 2022
शुरुआत
कब, कैसे आए लौटकर.. संजोग की ही बात है
15 अप्रैल 2022
आसान ही क्या है भला ?!
जो चैन से सोने दे, वो अरमान ही क्या है भला ?!
क्यों फिक्र है, की कोशिशों का फायदा कुछ हो, न हो ?!
इक बार करके देख ले.. नुकसान ही क्या है भला ?!
जन्नत तलक जो ले चले, वो राह मुश्किल है बडी
पर जिंदगी की दौड में आसान ही क्या है भला ?!
यूँ ही न किस्मत से खुलेंगी आसमाँ की खिडकियाँ
घायल न कर दे पंख जो, वो उडान ही क्या है भला ?!
जब गम चखो, तो ही खुशी का स्वाद चलता है पता
अश्कों बिना खिल जाए, वो मुस्कान ही क्या है भला ?!
लहरों से माने हार, वो इन्सान ही क्या है भला ?!
पूरी करे 'वो' सब मुरादें, पहले शिद्दत तो दिखा
बस मन्नतों से माने, वो भगवान ही क्या है भला ?!
- अनामिक
10 मार्च 2022
सादगी
बेसमय के अश्क
गर दर्द छलका है नयन से टीस गहरी है कही
"बस यूँ ही" कहकर टाल दे तू, ना बता, क्या है कमी
पर देखकर रिमझिम नयन मेरी फिकर है लाजमी
ये बेसमय के अश्क तेरे || मुखडा ||
गुमसुम रहे, कुछ ना कहे बेचैन या तनहा रहे
पढकर नजर पहचान लू तू जो चुभन भीतर सहे
जब अश्क की इक बूँद भी तेरी निगाहों से बहे
इन मोतियों के मोल का कुछ इल्म ही तुझको नही
ज़ाया न हो ये, इस लिए कर दू न्योछावर जर-जमीं
ये बेसमय के अश्क तेरे || अंतरा-१ ||
ये दो नयन, हैं दो सितारें पहचान इनकी रोशनी
तू ढूँढ ले खुदकी सहर अंधियारा हो, या चाँदनी
ये ही दुआ मांगू खुदा से खुश रहे तू हर घडी
खिलती रहे मुस्कान की तेरे लबों पे पंखुडी
तू जिस डगर रख दे कदम हो जीत ही आगे खडी
तू हौसलों की डोर से सौ ख्वाब बुन ले रेशमी
ये बेसमय के अश्क तेरे || अंतरा-२ ||
- कल्पेश पाटील
(०१/०५/१९ - १०/०३/२२)
07 सितंबर 2021
जो ख्वाब नैनों में बसा है
मैं हौसले से ख्वाइशों को मंजिलों से जोड दू
आँधी मिले, या जलजलें
ना ही रुकेंगे काफिलें
मैं वक्त पर होकर सवार तकदीर का रुख मोड दू
जो ख्वाब नैनों में बसा है, कैसे उसको छोड दू ?! || मुखडा ||
डर क्या अंधेरे का उसे ?!
जिसकी नजर में रोशनी
उडने गगन भी कम उसे
जिसने बुलंदी हो चुनी
गर ठान लू, पग में बंधी सब बेडियों को तोड दू
जो ख्वाब नैनों में बसा है, कैसे उसको छोड दू ?! || अंतरा-१ ||
इन्सान हूँ.. थककर कभी,
रुककर कभी, झुककर कभी
दो-चार लम्हें बैठ जाऊ
इसका मतलब ये नही की
हार माने टूट जाऊ
जो ख्वाब नैनों में बसा है, कैसे उसको छोड दू ?! || अंतरा-२ ||
- अनामिक
(१४/०९/२०१९ - ०७/०९/२०२१)
01 सितंबर 2021
ये नैना क्या कुछ बोल रहे हैं
ये जता रहे हैं काफी कुछ
ये खामोशी का चिलमन ओढे बता रहे हैं काफी कुछ
03 अगस्त 2021
हरियाली का दौर नही
31 जुलाई 2021
हम मिले तुम मिले
खुल गयी बंदिशें मिट गए फासलें
हम मिले तुम मिले
चाँदनी की लहर यूँ भिगाकर गयी
धुल गये दर्मियाँ थे जो शिकवें-गिलें
हम मिले तुम मिले || मुखडा ||
रूबरू हम हुए जैसे सागर-नदी
आइने में दिखी जैसे खुद की छवी
मिल गए हाथ यूँ जिंदगी की कडी
धडकनों की लडी दिल से दिल तक जुडी
जब नजर से नजर की हुई गुफ्तगू
मन के आँगन छनकने लगी पायलें
हम मिले तुम मिले || अंतरा-१ ||
लब्ज खामोश थे गा रहे थे नयन
प्रीत की धुन पे हम-तुम हुए थे मगन
छू गये रूह को सुर हुए यूँ बुलंद
हो रहा हो जमीं-आसमाँ का मिलन
रात की ओंस में घुल गयी साँस यूँ
जुगनुओं के नगर ख्वाब उडने चले
हम मिले तुम मिले || अंतरा-२ ||
- कल्पेश पाटील
(०८/०५/२०२१ - ३१/०७/२०२१)
24 जुलाई 2021
फिर से
15 जून 2021
सपनें तो सपनें होते हैं
अल्हड और भोले होते हैं
मनुष्य ये कहलाएंगे..
सपनें थोडी रह पाएंगे ?!
01 जून 2021
सब कह दिया
नजरों से नजरों ने सब कह दिया
गालों की सुर्खी ने मुस्काते चेहरे ने
बिन बोले अधरों ने सब कह दिया
दर्या की महफिल में ख़्वाबीदा साहिल से
जज़बाती लहरों ने सब कह दिया
खुशबू की बोली में धरती के कानों में
बरखा बौछारों ने सब कह दिया
|| मुखडा ||
दिन था वो, या था कोई अफसाना
जिस दिन किस्मत से ही मिल पाए थे हम
दो कदमों का, पर दो जनमों जितना
रस्ता दो पल में संग चल पाए थे हम
नैनों से छलकी खुशियों की भीनी
रिमझिम ने सब कह दिया
दिल की तारों ने धडकन में छेडी
सरगम ने सब कह दिया
आहिस्ता, होले से छूकर एहसासों को
हाथों के रेशम ने सब कह दिया
दो दिल की गलियों में खिलते गुलमोहरों से
ख्वाबों के मौसम ने सब कह दिया
|| अंतरा-१ ||
फिर कब हो मिलना मुश्किल था कहना
काश यूँ ही सदियों चलती अपनी बातें
बोझल थी साँसें पर हसते हसते
निकले हम लेकर यादों के गुलदस्तें
आगे बढकर भी पीछे ही मुडते
कदमों ने सब कह दिया
सपनों में हर दिन मिलते रहने की
कसमों ने सब कह दिया
|| अंतरा-२ ||
- अनामिक
(१३/०६/२०२० - ०१/०६/२०२१)
23 जुलाई 2020
ये नैना
मीठे पानी की झीलें हैं ?
या टिमटिम करते हीरें हैं ?
ये नैना कितने नीले हैं
ये तारों से चमकीले हैं
ये छुइमुइ से शर्मीले हैं
ये नटखट छैल-छबीले हैं
ये नैना कितने नीले हैं
ये अंतरिक्ष की गहराई
ये छुपाए रखे राज कई
ये वास्तव, या आभास कोई ?
ये देन खुदा की खास कोई
पीकर भी बुझती प्यास नही
ये लब्जों बिन ही गजल सुना दे
बन्सी से भी सुरीले हैं
ये नैना कितने नीले हैं
बिन बाणों के ये वार करे
दिल कितनों के बेजार करे
ये नजरों के कजरे से ही
अंजाने कई शिकार करे
जो कत्ल हुए इनसे, उनको भी
ये अमृत के प्यालें हैं
जो डूब गए इनमें, उनकी तो
रातों में भी उजालें हैं
ये नैना कितने नीले हैं
- अनामिक
(०९/०६/२०२०, २३/०७/२०२०)
25 अप्रैल 2020
कह दे ना
दिल में ना रहने दे
अधरों से लब्जों की
लडियाँ अब बहने दे
गुमसुम तू, गुपचुप मैं
खामोश है ये घडियाँ
जजबातों की ठहरी
बहने दे अब नदियाँ
कह दे ना.. कह दे ना..
दिल में जो है, कह दे.. || मुखडा ||
तरसा हूँ अल्हड से सुर तेरे सुनने
पलखों पे झलके हैं तेरे ही सपनें
अखियन के आँगन में आए ना निंदिया
पल पल भी लगता है तुझ बिन यूँ सदियाँ
जलता मन, सावन की
बसरा भी दे झडियाँ
जजबातों की ठहरी
बहने भी दे नदियाँ
कह दे ना.. कह दे ना..
दिल में ना रहने दे
कह दे ना.. कह दे ना..
दिल में जो है, कह दे.. || अंतरा ||
- कल्पेश पाटील
(१०-२५/०४/२०२०)
14 जनवरी 2020
तू जो मिला
मंजिल बिना मेरा सफर
तू जो मिला संजोग से
वीरान तनहा राह पर
चलने लगे फिर सिलसिलें
मिलने लगी गलियाँ नयी
खिलने लगी कलियाँ गुलाबी
जिंदगी की डाल पर
रूठी हुई तकदीर को
रब का इशारा मिल गया
तू जो मिला, यूँ चाँद को
झिलमिल सितारा मिल गया
सोचा न था, बन जाएगा
तू ही जरूरी इस कदर
तेरे सिवा दूजा न अब
दिल को गवारा हमसफर || मुखडा ||
सहमे हुए थे सुर सभी
तुझ संग तराने बन गए
बेनूर थे मंजर सभी
दिलकश नजारे खिल गए
पतझड भरे गलियारों को
रिमझिम फुहारें मिल गयी
बरसों बिछे अंधियारों में
सूरज हजारों खिल गए
ये जिंदगी थी बेदिशा
मक्सद दुबारा मिल गया
तू जो मिला, गुमराह कश्ती को
किनारा मिल गया || अंतरा ||
- अनामिक
(१३/१२/२०१९ - १४/०१/२०२०)
05 जनवरी 2020
ना ही झुकेगा फैसला
ना ही थकेगा हौसला
ना ही रुकेगा ख्वाइशों के पंछियों का काफिला
ना दुश्मनों की है फिकर
ना साजिशों का है असर
भयभीत होकर छल-कपट से ना खतम होगा सफर
हो राह शोलों से भरी
ना लडखडाएंगे कदम
पुख्ता इरादें हो अगर
क्या ही डराएंगे जखम
मैं आँधियों से हार जानेवालों में से हूँ नही
मैं जलजलों से मात खानेवालों में से हूँ नही
- अनामिक
(२८/१२/२०१९, ०५/०१/२०२०)
इक अजब सी बेकरारी
क्या पता, क्या खल रहा ? है खामखा बेचैन मन
जैसे हवा में घुल गया हो साँस में चुभता धुआ
जैसे गगन में बादलों ने सूर्य पे कब्जा किया
जैसे समंदर ने दबाई हो लहरों की आँधियाँ
जैसे क्षितिज पे चीखती हो सांज की खामोशियाँ
जैसे लबों में घुट रहा हो राज कोई अनकहा
जैसे भटकता ख्वाब नैनों में दफन है हो रहा
जैसे कलम में सूख गयी हो इक अधूरी दासताँ
जैसे दुआएँ खो गयी हो मंदिरों का रासता
है इक अजब सी बेकरारी..
- अनामिक
(२२/०५/२०१९, ०५/०१/२०२०)
28 अगस्त 2019
मैं सूरज की परछाई
मैं अंबर की ऊँचाई भी
मैं किरणों की अपार ऊर्जा
मैं सूरज की परछाई
मैं संध्या की मोहकता भी
मैं साहिल की विनम्रता भी
मैं लहरों की चंचलता भी
मैं बिजली की शहनाई
मैं धरती की विशालता भी
मैं पानी की शीतलता भी
मैं बादल की नरमाई भी
मैं पत्थर की कठिनाई
मेरे कदम रोककर दिखाओ
या हौसला तोडकर दिखाओ
नन्ही समझ न धोखा खाओ
मैं सूरज की परछाई
- अनामिक
(२६,२८/०८/२०१९)
24 अगस्त 2019
हवा के सर्द झोंके सी
04 अगस्त 2019
चलता रहे यूँ ही सफर
जो साथ तेरे है शुरू
दो-चार लम्हों का सफर
ना खत्म हो, चलता रहे यूँ उम्रभर
जो बात तुझसे है छिडी
दो लब्ज, या इक दासताँ
वो गीत सी घुलती रहे शामो-सहर || मुखडा ||
तू बिन कहे भी मैं सुनू
खामोशियों की भी जुबाँ
तेरी उदासी, या खुशी
बेचैनियाँ, या ख्वाइशें
जिनसे खिले गुमसुम लबों पे
मुस्कुराहट की कली
ना इल्म भी जिनका तुझे
मैं सब करू वो कोशिशें
तेरे नयन के ख्वाबों में
मैं हौसलों के रंग भरू
मंजिल चुने तू, और बनू मैं रहगुजर
ना खत्म हो, चलता रहे यूँ ही सफर || अंतरा ||
- अनामिक
(०४/०८/२०१९)
31 जुलाई 2019
खामोशियाँ
अंगार सी बुझती रहे, जलती रहे खामोशियाँ
क्यों बात होकर भी बहोत बढती रहे खामोशियाँ
क्यों साथ होकर दर्मियाँ चलती रहे खामोशियाँ
क्यों बेरुखी के रूप में बहती रहे खामोशियाँ
क्यों कुछ न कहकर भी बहोत कहती रहे खामोशियाँ
क्यों सांज की दहलीज पर मिलती रहे खामोशियाँ
क्यों रात की चादर तले छलती रहे खामोशियाँ
खामोशियाँ.. खामोशियाँ.. खलती रहे खामोशियाँ
चुभते धुएँ सी साँस में घुलती रहे खामोशियाँ
- अनामिक
(३०,३१/०७/२०१९)
25 जुलाई 2019
एक पहेली
पर जितनी भी पहेलियाँ हो, चाहे तरह तरह की, न्यारी
सौ पहेलियाँ सुलझाने में मुझे न कुछ दिलचस्पी है
सुलझा लू वो एक पहेली, बस इतना ही काफी है
एक पहेली..
अंतरिक्ष के तारों की नक्काशी जैसी
जितनी दिलकश, उतनी गहरी
जिसका कोई छोर नही
भीतर कोलाहल या संगीत
बाहर बिलकुल शोर नही
एक पहेली..
मोरपंख पे रची हुई रंगोली जैसी
लुभावनी, पर जटिल बडी ही
नाजुक, पर कमजोर नही
जितनी मोहक, उतनी मुश्किल
एक पहेली.. जो सुलझाने
उम्र खर्च दू, तो भी कम है
मिल जाए हल, ना मिल पाए
उलझा रहू उम्रभर यूँ ही
ना भी सुलझी, ना गम है
- अनामिक
(२९/०५/२०१९ - २५/०७/२०१९)
27 मई 2019
पहेलियाँ
शख्सों की, शख्सियतों की
चेहरों के परदों के पीछे छुपी हुई असलियतों की
चलती-फिरती पहेलियाँ हैं इन्सानों के लिबास में
उलझ न जाओ खुद ही इनको सुलझाने के प्रयास में
किसको जानो ? कितना जानो ?
जिसको भी, जितना भी जानो..
जितनी भी नापो गहराई, उससे भी गहरा पानी है
जितनी भी मानो सच्चाई, बिलकुल अलग कहानी है
एक पहेली बूझो तो, झटसे दूजी भी हाजिर है
जिसको जितना समझो भोला, वो उतना ही शातिर है
प्याज की घनी परतों जैसे
सारे परदें खुल जाए जब
मन में थी जो छवी बनी,
उससे कुछ ना मिल-जुल पाए जब
जितनी भी दो मन को तसल्ली
सुद-बुद से समझी और परखी जितनी भी झुठला दो बातें
सच तो सच ही आखिर है
यहा पहेली बनकर जीने में हर कोई माहिर है
- अनामिक
(२६,२७/०५/२०१९)
17 मई 2019
लिखेंगे और ज्यादा
न हो सपनें खतम जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा
खिले खुशियाँ, या बरसे गम.. लिखेंगे और ज्यादा
रहे हम कल, रहे ना हम.. लिखेंगे और ज्यादा
किसी मुस्कान की सरगम.. किसीके नैन की शबनम
किसीकी जुल्फ का रेशम.. लिखेंगे और ज्यादा
कोई पढकर सराहे.. तो लिखेंगे और ज्यादा
या पढना भी न चाहे.. तो लिखेंगे और ज्यादा
जले दिल की शमा जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा
न छू ले आसमाँ जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा
- अनामिक
(१६/०५/२०१९)
14 मई 2019
शर्त
12 मई 2019
पाहिले तुज ज्या क्षणी
स्तब्ध झालो, गुंग झालो
मग्न झालो, मुग्ध झालो
तृप्त झालो, लुब्ध झालो
तप्त ग्रीष्माच्या दुपारी
सर बरसली श्रावणी
अप्सरेसम रुप तुझे ते
पाहिले मी ज्या क्षणी || धृ ||
भरजरी लावण्य लेवुन
तू अशी येता समोरी
उमटले प्रतिबिंब गहिरे
भारलेल्या अंतरी
स्वर्गलोकातून अवतरली
परी जणु अंगणी
थक्क झालो, दंग झालो
पाहिले तुज ज्या क्षणी || १ ||
चांदण्या पडल्या फिक्या
लखलख तुझ्या तेजामुळे
चंद्रमा ठरलीस तू
सगळेच उरले ठोकळे
पूर आला नक्षत्रांचा
काळोख्या तारांगणी
थक्क झालो, दंग झालो
पाहिले तुज ज्या क्षणी || २ ||
श्वास अडला चार घटका
थांबला हृदयात ठोका
राहिले उघडेच डोळे
जणु विजेचा सौम्य झटका
मी कसे शुद्धीत यावे ?
काढे ना चिमटा कुणी
थक्क झालो, दंग झालो
पाहिले तुज ज्या क्षणी || ३ ||
- अनामिक
(११-२२/०३/२०१९, १२/०५/२०१९)
04 मई 2019
ऐ चाँद.. तू ही है पसंद
लंबी अमावस बाद फिर
जो छुप गया था बादलों में
कल मिला था चाँद फिर
गप्पें किए फिर खूब उसने
फिर मजाक-मजाक में
उसने ही छेडी बात खुद
की "कौन है तुमको पसंद ?"
मैं मन ही मन में हस दिया
फिर कश्मकश में पड गया
अब चाँद को कैसे कहू ?
"ऐ चाँद.. तू ही है पसंद
दिल के, नजर के दायरों में
शायरी के अक्षरों में
बासुरी के सब सुरों में
सिर्फ तू ही है बुलंद"
पर क्या करू ? मजबूर था
होकर जुबाँ पर नाम उसका मैं बता पाया नही
क्या ही पता ? सच जानकर,
होकर खफा अंबर में वो खिलना न बंद कर दे कही
मैं इसलिए बस मुस्कुराया
और बोला, "है कोई.."
खुद जान न पाए,
चाँद इतना नासमझ भी तो नही
- अनामिक
(०३,०४/०५/२०१९)
31 मार्च 2019
तुझे हासणे
दिलखुलास, निर्भेळ, निखालस
धुंद, मुक्त, निर्मळ अन् गोंडस
लहानग्यागत तुझे हासणे
कोसळत्या धबधब्यासारखे
झुळझुळत्या निर्झरासारखे
उसळत्या कारंज्यासारखे
सळसळत्या वादळासारखे
खळखळत्या सागरासारखे
स्वच्छंदी पाखरासारखे
गुणगुणत्या कोकिळेसारखे
चिमणीच्या चिवचिवीसारखे
कर्णमधुर भैरवीसारखे
लाटांच्या संगितासारखे
रिमझिमणाऱ्या सरींसारखे
कृष्णाच्या बासरीसारखे
काजूकतली, खिरीसारखे
बासुंदी अन् पुरीसारखे
मोतीचूर लाडवासारखे
आंब्याच्या गोडव्यासारखे
रसरसल्या पोळ्यातुन टपटप
ओघळणाऱ्या मधासारखे
जखमेवर औषधासारखे
फुलण्याच्या प्रेरणेसारखे
मरगळलेल्या आयुष्याला
जणू नव्या चेतनेसारखे
बरसत राहो तुझे हासणे
पुनवेच्या चांदण्यासारखे
हिरव्यागार श्रावणासारखे
(२१/०२/२०१९, ३०/०३/२०१९)
10 फ़रवरी 2019
ती
निखळ, खोडकर, नटखट, चंचल
दिलखुलास, लहरी, स्वानंदी
बेधुंद, बेफिकिर, स्वच्छंदी
निडर, धीट, बिनधास्त, बेधडक
कधी विचारी, हळवी, भावुक
गोजिरवाणी, गोड, लाजरी
अन् लडिवाळ, लाघवी, हसरी
नाजुक, मोहक, मखमल, कोमल
दीप्त, प्रखर, तेजस्वी, उज्ज्वल
चैतन्याचा, उत्साहाचा
अन् ऊर्जेचा अखंड श्रावण
अनंत छटा व्यक्तिमत्वाच्या
असंख्य पैलू अस्तित्वाचे
पुरे न पडती विशेषणांचे रंग
तिचे करताना चित्रण
- अनामिक
(२४-३१/०१/२०१९, १०/०२/२०१९)
09 फ़रवरी 2019
मिठास
नाजुक होंठों पर मिश्री की डलियों जैसी मुस्कुराहटें
लब्जों से चाशनी छलकती, नजरों में शरबत की नदिया
गुलाबजामुन से गालों पर शहद सी शर्म-हया की छींटें
इतनी ज्यादा मिठास तेरी
जितनी भी पीकर जी भरकर भर लू इन नैनों के प्यालें
इस दिल को ना मिले राहतें
जितनी कर लू बातें तुझसे
जितनी जी लू सोहबत तेरी
जितनी पी लू खूबसूरती
और बढे ये अजब प्यास है
मिठास ही ये मर्ज है दिल का
इलाज भी ये मिठास है
- अनामिक
(१७,१८/०१/२०१९, ०९/०२/२०१९)
06 फ़रवरी 2019
चाबी
मैं जजबातों के तीर रोक लू इन पलखों की कमान पे
पर..
तेरे कदमों की आहट मैं
तेरी नजरों की हरकत में
तेरी हसीं मुस्कुराहट में वो जादूई खूबी है
और तेरे पास वो दो बातों की मिठास की चाबी है,
जिससे..
हर इक ताला खुल जाए
और हर इक पेहरा ढल जाए
हर पत्थर सख्त पिघल जाए
संभले जजबात फिसल जाए
मैं मुश्किल से परहेज करू तुझसे, पर तू आसानी से..
सब व्रत मेरे तुडवाती है तू अपनी इक शैतानी से
- अनामिक
(२७/११/२०१८, ०६/०२/२०१९)
04 फ़रवरी 2019
सदाफुली
04 जनवरी 2019
आगे चला
मैं तोडकर आगे चला
बेदर्द फर्जी दोस्तियाँ
मैं छोडकर आगे चला
सब मतलबी चेहरों से मैं
मुह मोडकर आगे चला
नकली, फरेबी सब मुखौटें
फाडकर आगे चला
अंधा भरोसा आँख से
मैं झाडकर आगे चला
खोखले भरम के बुलबुलें
मैं फोडकर आगे चला
बेजान रिश्तों के सडे शव
गाडकर आगे चला
मक्कार धोखेबाज जग से
दौडकर आगे चला
- अनामिक
(०१/०५/२०१८ - ०४/०१/२०१९)
12 अक्टूबर 2018
उड चला इक ख्वाब
09 मई 2018
याद बाकी है कही
19 मार्च 2018
बेमौसम बारिश
08 मार्च 2018
छोड दू
03 मार्च 2018
ऐ चाँद पूनम के, बता..
30 जनवरी 2018
शब्द आले, शब्द गेले
25 जनवरी 2018
काँच की दीवार
31 दिसंबर 2017
कुछ रह गया, कुछ ढह गया
22 दिसंबर 2017
तोहफा
21 दिसंबर 2017
ख्वाब का पुल
20 दिसंबर 2017
हादसा
07 दिसंबर 2017
नजरें
04 दिसंबर 2017
मरम्मत
गिलें
30 नवंबर 2017
सौदा
29 नवंबर 2017
कुछ करतब हो तो बतलाओ
23 नवंबर 2017
चुन लिया, बस चुन लिया
07 नवंबर 2017
रूबरू
फिर लौट आयी वो घडी
जिस मोड से मैं थी मुडी,
उस मोड पे फिर हूँ खडी
रंगीन ख्वाबों के सफर में अतीत फिर है रूबरू
दो बोगियाँ होकर जुदा भी ना मिली थी मंजिलें
कितनी भी खोलू खिडकियाँ,
गुजरा नजारा ना दिखे
जो रह गया पीछे कही
स्टेशन दुबारा ना दिखे
खिलकर लबों पे चुप हुआ, वो गीत फिर है रूबरू
इक हादसे में खो दिया, वो मीत फिर है रूबरू ॥ अंतरा-१ ॥
खुद ही बुझाई थी कभी, वो आग फिर क्यों जल रही ?
कुछ गलतियाँ, नादानियाँ,
कुछ जिद-घमंड, शिकवें-गिलें
जड से जला देती अगर
होते न पैदा फासलें
वो हार मेरी, गैर की बन जीत फिर है रूबरू
(०१-०७/११/२०१७)
31 अक्टूबर 2017
चोट
29 अक्टूबर 2017
काळोखाच्या किती छटा
30 सितंबर 2017
कोडी
11 सितंबर 2017
तालाब
04 सितंबर 2017
ये रात है.. ये राह है..
31 अगस्त 2017
अखेरचे हे गीत सखे
27 अगस्त 2017
सखे
23 अगस्त 2017
दिल फिसलने की घडी
13 अगस्त 2017
कभी ना हो खतम
ये बेसमय चलती हमारी बात भी ना हो खतम
ये चाँदनी की मदभरी बरसात भी ना हो खतम
दिल से छलकते शबनमी जजबात भी ना हो खतम
पर ख्वाब सी ये जादुई मुलाकात भी ना हो खतम
ये उम्रभर के साथ की शुरुआत भी ना हो खतम
23 जुलाई 2017
आर या पार
16 जुलाई 2017
बारिशें
सागर-लहर की करवटें
हैं बिजलियों की आहटें
ये तेरी लहराती लटें
ये मोतियों की बारिशें
भीगा जहाँ, हम दो यहा
क्या और हो फर्माइशें ?
ये हाथ तेरा रेशमी
जैसे क्षितिज पे मिल रही
बेताब अंबर से जमीं
और जाम तेरे नैन में
प्याला जिगर का भर लिया
फिर भी बडा बेचैन मैं
यूँ ही बरसती जो रही
मेरे संभलने की भला
फिर कोई गुंजाइश नही
(१५/०७/२०१७)
13 जुलाई 2017
जवाब
सब तानों का, अपमानों का हिसाब तीखे अक्षर से दू
मगर क्या करू ? शायर जो हूँ, शायर का ये धरम नही
काँटें भी दे मारे कोई, गुलाब महके इत्तर से दू
कलम हाथ में है नाजुक सी, नोकीली तलवार नही
इश्क छलकता है इससे, इसमें रंजिश की धार नही
हर किस्सा इक नज्म बनेगी, जंग कर लो, या समझौता
दिल जीतेगी दुश्मन का भी, इसकी किस्मत हार नही
- अनामिक
(२६/०४/२०१६, १२,१३/०७/२०१७)
08 जुलाई 2017
ज़िंदगी को ब्रेक नही है
01 मई 2017
राधिका
(२९/०४/२०१७, ०१/०५/२०१७)
28 अप्रैल 2017
पुष्कळ झाली फुले अबोली
20 अप्रैल 2017
डगर
13 अप्रैल 2017
मोल
एक तोहफा ले लिया है फिर तुम्हारे नाम का
ये जानकर भी की तुम्हे इसकी कदर तो है नही
पर क्या करू ? आदत कहो, खुद की तसल्ली ही सही
संदूक में ही बंद रखू, तुम तक न पहुँचाऊ अभी
घर-वापसी की तो न नौबत आएगी उसपर कभी
छोड भी दो मेरे, तोहफे के मगर जजबात हैं
उनका समझना मोल ना बस की तुम्हारे बात है
- अनामिक
(११-१३/०४/२०१७)
03 अप्रैल 2017
बस एक कदम
27 मार्च 2017
पहचान
21 मार्च 2017
आओ अब कुछ बात करे ?
आओ अब कुछ बात करे ?
अजनबियों के जैसे रहकर अगर तसल्ली मिल गयी हो तो
फिर से इक शुरुआत करे ? ॥ धृ ॥
कुछ शिकवें मैं रखू जेब में
कुछ शिकायतें तुम दफना दो
कुछ कसूर हम माफ करे
मुस्कुराहटों की मखमल से
चेहरों से नाराजगी भरी
धूल झटककर साफ करे
अंजाने में खडी हुई इन खामोशी की दीवारों पर
लब्जों का आघात करे ?
आओ अब कुछ बात करे ? ॥ १ ॥
फाड फेंक दे बिगडे किस्सें
गलतफहमियों के सब पन्नें
अतीत की उस किताब से
अनबन के नुकसान-फायदें
कडवाहट की फिजूलखर्ची
चलो मिटा दे हिसाब से
रंजिश की रूखी धरती पर अपनेपन की चंद बूँदों की
हलकी सी बरसात करे ?
आओ अब कुछ बात करे ? ॥ २ ॥
- अनामिक
(२०/०२/२०१७ - २१/०३/२०१७)
18 मार्च 2017
आज भी
07 फ़रवरी 2017
पुन्हा मी वाचले सारे
पुन्हा मी ऐकले गाणे तुझ्या ओठात अडलेले ॥ धृ ॥
मला बघताच हास्याची कळी हलकेच फुलणारी
जरा नजरानजर होता खळी गालात खुलणारी
पुन्हा टिपले मी चेहऱ्यावर गुलाबी रंग चढलेले
पुन्हा मी वाचले सारे.. ॥ १ ॥
भिडे या अंतरी जर सूर त्या हळुवार स्पंदांचा
कळे जर अर्थ मौनाचा, कशाला भार शब्दांचा ?
खुणावे पापण्यांना द्वार स्वप्नांचे उघडलेले
पुन्हा मी वाचले सारे.. ॥ २ ॥
- अनामिक
(०६/०१/२०१७ - ०७/०२/२०१७)
15 जनवरी 2017
संक्रांत
13 जनवरी 2017
राही
06 जनवरी 2017
सौगात जाया हो गयी
05 जनवरी 2017
बचपना
बचपन के सब खेल सलोने यादों के संग लाया हूँ
देखो मेरा रेत का महल, सजा रही हैं शंख-सीपियाँ
लहरों की गोदी में तैर रही है वो कागज की नैया
वहा हवा संग गपशप करते उंगली से बांधे गुब्बारें
कैद बुलबुलों में साबुन के उडे जा रहे सपनें न्यारे
वहा गगन में मेघों के संग लडा रही है पेंच पतंग
नाम लिखे हैं साहिल पे जो, चूम रही है शोख तरंग
बचपन की उन यादों को बचपन में ही क्यों कैद रखे ?
क्यों न बडे होकर भी उनका नये सिरे से स्वाद चखे ?
- अनामिक
(१०/१२/२०१६ - ०५/०१/२०१७)
04 जनवरी 2017
कधीतरी वाटेलच की
धीर संयमाचा मुखवटा कधीतरी फाटेलच की
गोष्ट संपली अर्ध्यातच, समजून अचानक मिटलेले
पुस्तक ते उघडून पहावे, कधीतरी वाटेलच की
किती नद्या अडवून ठेवल्या डोळ्यांच्या धरणांनी, पण
तळे पापण्यांच्या काठावर कधीतरी साठेलच की
किती पळावे सशासारखे शर्यतीत नवस्वप्नांच्या
आठवणींचे हळवे कासव कधीतरी गाठेलच की
सहज मिसळतो, रमतो हल्ली अनोळख्यांच्याही गर्दीत
घोळक्यातही त्या एकाकी कधीतरी वाटेलच की
पुन्हा नव्याने खुल्या गळ्याने जीवनगाणे गाइनही
चुकून येता सूर जुने ओठात कंठ दाटेलच की
- अनामिक
(०२-०४/०१/२०१७)