दिल बहकने चाय के भी जाम काफी है
यूँ घनेरी भीड है, चेहरे हजारो है
जी मचलने के लिये इक नाम काफी है
ना लगे अल्फाज, ना कागज-कलम-स्याही
जो निगाहों ने लिखे पैगाम काफी है
क्यूँ भला हथियार से जीते जमीं दिल की
जो किया तीर-ए-नजर ने काम काफी है
शर्मिली मुस्कान से घायल करो ना यूँ
इस हँसी पर कत्ल के इल्जाम काफी है
गर चिराग-ए-जिन मिले भी, ना दुआ माँगू
इस सुहानी साथ का ईनाम काफी है
सिलसिले खिलने लगे इन खंडरों में भी
यूँ चले बस, हो न हो अंजाम, काफी है
- अनामिक
(१४/१०/२०१२ - १७/१०/२०१२)