इक अजब सी बेकरारी.. इक अजब सी है चुभन
क्या पता, क्या खल रहा ? है खामखा बेचैन मन
जैसे हवा में घुल गया हो साँस में चुभता धुआ
जैसे गगन में बादलों ने सूर्य पे कब्जा किया
जैसे समंदर ने दबाई हो लहरों की आँधियाँ
जैसे क्षितिज पे चीखती हो सांज की खामोशियाँ
जैसे लबों में घुट रहा हो राज कोई अनकहा
जैसे भटकता ख्वाब नैनों में दफन है हो रहा
जैसे कलम में सूख गयी हो इक अधूरी दासताँ
जैसे दुआएँ खो गयी हो मंदिरों का रासता
है इक अजब सी बेकरारी..
- अनामिक
(२२/०५/२०१९, ०५/०१/२०२०)
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