09 जुलाई 2010

बझ है की मानता नही...

आज कल 'गूगल का बझ' हमारे जिंदगी का एक हिस्सा बन गया है. हर रोज बझ पे कुछ न कुछ बकवास ना करो, तो मानो खाना ही नही हजम होता. ना सूरज ढलता है.. ना नींद आती है..
ऐसे बझ के प्रति मेरे मन में उठी तरंगों को शब्दों में पिरोने की कोशिश कर रहा हूँ.

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मूल गीत : दिल है की मानता नही (निर्देश के लिए नीचे दिया गया है)
फिल्म : दिल है की मानता नही
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बझ है की मानता नही...
नॉनसेन्स बडी है बझ में कॉमेंटिंग.. मैं जानता ही नही..
बझ है की मानता नही...
बकवास सारी क्यूँ हो रही है.. मैं जानता ही नही..
बझ है की मानता नही...

दिल चाहे हर पल सब के बझों को बस यू ही देखते रहे
घर हो ऑफिस, ना बझ से जुदा हो, बस कमेंट्स लिखते रहे
बझ को पढा जा.. रिप्लाय किया जा.. मतलब रहे या नही..
बझ है की मानता नही...

तेरे बझों पे दो चार ताने खामखा हमने दिये
तूने लिखी जो सौ गालियाँ भी, बेशरम हम बन गये
बरबाद बझ है.. सब जानके भी, करते दिमाग का दही..
बझ है की मानता नही...

बकवास सारी क्यूँ हो रही है.. मैं जानता ही नही..
बझ है की मानता नही...

- अनामिक
(०८/०७/२०१०)

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मूल गीत - दिल है की मानता नही..

दिल है की मानता नही..
मुश्किल बडी है रस्मे मुहोब्बत, ये जानता ही नही
दिल है की मानता नही..
ये बेकरारी क्यूँ हो रही है, ये जानता ही नही
दिल है की मानता नही..

दिल तो ये चाहे, हर पल तुम्हे हम बस यू ही देखा करे
मरके भी हम ना तुम से जुदा हो, आओ कुछ ऐसा करे
मुझ में समा जा.. आ पास आ जा.. हमदम मेरे हमनशीं
दिल है की मानता नही..

तेरी वफाएँ, तेरी मुहोब्बत, सब कुछ है मेरे लिये
तूने दिया है नजराना दिल को, हम तो है तेरे लियेश
ये बात सच है.. सब जानते है.. तुम को भी है ये यकीन
दिल है की मानता नही..

ये बेकरारी क्यूँ हो रही है, ये जानता ही नही
दिल है की मानता नही..