22 मार्च 2016

सांझ

चलो सखी हम दूर जहाँ से, इक दर्या के शांत किनारे
सूरज की लाली में लिपटे गगन-तले इक सांझ गुजारे

लहरों का हो शोर सुरीला, और पवन की चंचल हलचल
नर्म रेत की चादर ओढे इत्मिनान से बैठे कुछ पल

घुले साँस में साँस, पहन ले हाथों में हाथों के कंगन
इक-टुक देखे दूर क्षितिज पे, धरती और अंबर का मीलन

कंधे के सिरहाने मेरे चैन-सुकूँ से तुम सो जाओ
फिक्र करो ना इस पल की, बस उजले कल के ख्वाब सजाओ

भीनी सी मुस्कान तुम्हारी देख देख मैं दिल बहलाऊ
जुल्फ-हवा का खेल निहारू, हकले से माथा सहलाऊ

तुम्हे छेडती शरारती लट मैं उंगली से दूर हटाऊ
नींद टूटने दू न तुम्हारी, भला जागते उम्र बिताऊ

घने बादलों में सपनों के यूँ ही तैरते रहे सांझ-भर
आए-जाए सूरज-चंदा, दुनिया की कुछ भी न हो खबर

- अनामिक
(२३/०४/२०१५ - २२/०३/२०१६)

08 मार्च 2016

बेमौसम

जाने आज हुआ है अंबर इतना क्यों बोझल
घिर आए हैं गर्मी में भी बरखा के बादल
धीमे स्वर में खनक रही है बिजली की पायल
बूँदें हैं बेताब भिगाने धरती का आँचल

इनको भी महसूस हो गयी मेरे दिल की प्यास
इसी लिए ये बेमौसम आए हैं मिलने खास
पर जिसके इंतजार में उलझी है मेरी साँस
उसको कब होगा मेरे जज़बातों का एहसास ?

ये सब तो जाएंगे बनकर इक दिन के मेहमान
पलखों को तोहफें में देकर अश्कों का तूफान
इन्हें कहूंगा, जरा बरसना उसके भी आँगन
उसको मेरे हिस्से की भी दे आना मुस्कान

- अनामिक
(०४-०७/०३/२०१६)