12 अक्तूबर 2018

उड चला इक ख्वाब

इक ख्वाब पलखों से फिसलकर उड चला.. 

इक ख्वाब पलखों से फिसलकर उड चला दूजे नगर 
इक ख्वाब आँखों से उछलकर चल पडा अपनी डगर 

इक ख्वाब दिल की बंदिशों को तोडकर है उड चला 
इक ख्वाब ठहरी ख्वाइशों को छोडकर है उड चला 

वो गुदगुदी था, या चुभन ? 
था सर्द ठंडक, या जलन ? 

सच था, भरम, या झूठ था ? 
तेजाब का वो घूँट था ? 

रिमझिम खुशी की बारिशें ? 
या दर्द का सैलाब था ? 

जैसा भी था.. नायाब था 
सबसे सलोना ख्वाब था 

- अनामिक 
(०५/०६/२०१८ - १२/१०/२०१८) 

09 मई 2018

याद बाकी है कही

जो ढह गया पुल, बांधने की ख्वाइशें बिलकुल नही 
बस इक पुराने जलजले की याद बाकी है कही 

सब जख्म कब के भर चुके.. सब दर्द फीके पड गए 
बस उनके गहरे दाग अर्सों बाद बाकी हैं कही 

कब का हजम भी कर लिया उस दौर का जालिम जहर 
कुछ नीम से कडवे पलों का स्वाद बाकी है कही 

मजबूत ख्वाबों का महल.. गिर भी गया, अब गम नही 
कमजोर, मलबे में दबी बुनियाद बाकी है कही 

ना है खुदा से कुछ गिला.. जो ना दिया, अच्छा किया 
बस अनसुनी, खारिज हुई फर्याद बाकी है कही 

- अनामिक 
(२६/१२/२०१७ - ०९/०५/२०१८) 

19 मार्च 2018

बेमौसम बारिश

ये तारों की कुछ साजिश है, 
या कायनात की ख्वाइश है ? 
कुछ तो कारण है, वरना क्यों 
बेमौसम छलकी बारिश है ? 

बिजली की झनकार छेडकर 
बूँदों में पैगाम भेजकर 
रूठी धरती को मनाने की 
आसमान की कोशिश है 

अपनी मिट्टी के इत्तर से 
सभी दिशाएँ महकाने की 
बेकरार उस आसमान की 
धरती से फर्माइश है 

धरती भी अब भूलकर गिलें 
क्षितिज पे रुके आसमान के 
मुस्कुराते लग जाए गले 
कुदरत की यही सिफारिश है 

- अनामिक 
(१९/०३/२०१८) 

08 मार्च 2018

छोड दू

तुम रूठ जाओ, मैं मनाऊ.. खेल ये चलता रहे 
रूठो न इतना भी, की मैं थककर मनाना छोड दू 

नजरें चुरा लो कुछ दफा.. कर लू नजरअंदाज भी 
पर यूँ न फेरो मुह, की मैं नजरें मिलाना छोड दू 

मैं कुछ कहू, कुछ पूछ लू.. सुनकर भी कर दो अनसुना 
इतनी भी चुप्पी मत रखो, मैं बात करना छोड दू 

पीछे चलो, आगे चलो.. धीमे चलो, भागे चलो 
पर यूँ न मोडो कदम, की मैं साथ चलना छोड दू 

- अनामिक 
(२०/०२/२०१८ - ०८/०३/२०१८)

03 मार्च 2018

ऐ चाँद पूनम के, बता..

तू दूर है, या पास है ? 
तू गैर है, या खास है ? 
तू जाम है, या प्यास है ? 
ऐ चाँद पूनम के, बता..
                               तू ख्वाब है, या आस है ? 
                               या दर्द का एहसास है ? 
                               तू सच है, या आभास है ? 
                               ऐ चाँद पूनम के, बता.. 

ये शबनमी तेरी किरन 
है छाँव शीतल, या जलन ? 
है नर्म रेशम, या चुभन ? 
ऐ चाँद पूनम के, बता.. 

                               होकर नजर के सामने 
                               तू बादलों के पार है 
                               क्यों दर्मियाँ दीवार है ? 
                               ऐ चाँद पूनम के, बता..

- अनामिक
(०१-०३/०३/२०१८) 

30 जनवरी 2018

शब्द आले, शब्द गेले

शब्द आले, शब्द गेले, शब्द बोलत राहिले 
शब्द पडले, शब्द उठले, शब्द डोलत राहिले 

शब्द मिटले, शब्द फुलले, शब्द बहरत राहिले 
शब्द झडले, शब्द रुजले, शब्द उमलत राहिले 

शब्द सुकले, शब्द भिजले, शब्द बरसत राहिले 
शब्द स्वप्नांच्या सरींचे वार झेलत राहिले 

शब्द खचले, शब्द विरले 
शब्द लढले, शब्द हरले 
शब्द बुडले, शब्द तरले, शब्द उसळत राहिले 
वेदनांची रत्नमाला शब्द माळत राहिले 

शब्द झुरले, शब्द रुसले 
शब्द रडले, शब्द हसले 
शब्द भुलले, शब्द फसले, शब्द भाळत राहिले 
शब्द दगडी देवतांवर व्यर्थ उधळत राहिले 

शब्द थकले, शब्द विटले 
शब्द सजले, शब्द नटले 
कालगंगेतून अविरत शब्द वाहत राहिले 
मार्ग सारे खुंटले, पण शब्द चालत राहिले 

- अनामिक 
(१२-३०/०१/२०१८) 

25 जनवरी 2018

काँच की दीवार

ये काँच की दीवार है मेरे-तुम्हारे दर्मियाँ 
यूँ तो लगे नाजुक, मगर फौलाद से कुछ कम नही 
इस को गिराने का खुदा की जादू में भी दम नही 

इस छोर का, उस पार का सब कुछ दिखाई दे, मगर.. 
हैं बंदिशें दोनो तरफ आवाज के हर रूप पर 
बातें, पुकारें, शोर, सुर, सिसकी, हसी, सरगम नही 

इक दौर था, जब दो पलों की गुफ्तगू ही थी खुशी 
अब तो महीनों की घनी खामोशी का भी गम नही 

अब सच कहू, तो काँच की दीवार ही ये है सही 
बंद खिडकियाँ खुलने की अब उम्मीद कम से कम नही 
शायद पुकारोगे कभी, गलती से ही.. ये भ्रम नही 
हाँ, वक्त से बढिया किसी भी जख्म पर मरहम नही 

- अनामिक 
(२३-२५/०१/२०१८)