07 सितंबर 2021

जो ख्वाब नैनों में बसा है

जो ख्वाब नैनों में बसा है, कैसे उसको​​ छोड दू ?!
मैं हौसले से ख्वाइशों को मंजिलों से जोड दू

आँधी मिले, या जलजलें
ना ही रुकेंगे काफिलें
मैं वक्त पर होकर सवार तकदीर का रुख मोड दू
जो ख्वाब नैनों में बसा है, कैसे उसको​​ छोड दू ?!  || मुखडा ||

डर क्या अंधेरे का उसे ?!
जिसकी नजर में रोशनी
उडने गगन भी कम उसे
जिसने बुलंदी हो चुनी

गर ठान लू, पग में बंधी सब बेडियों को तोड दू
जो ख्वाब नैनों में बसा है, कैसे उसको​​ छोड दू ?!  || अंतरा-१ ||

इन्सान हूँ.. थककर कभी,
रुककर कभी, झुककर कभी
दो-चार लम्हें बैठ जाऊ
इसका मतलब ये नही की
हार माने टूट जाऊ

फिर से उठू, और जीत के संग बात अपनी छेड दू
जो ख्वाब नैनों में बसा है, कैसे उसको​​ छोड दू ?!  || अंतरा-२ ||

- अनामिक
(१४/०९/२०१९ - ०७/०९/२०२१) 

01 सितंबर 2021

ये नैना क्या कुछ बोल रहे हैं

​ये छुपा रहे हैं काफी कुछ
ये जता रहे हैं काफी कुछ
ये खामोशी का चिलमन ओढे बता रहे हैं काफी कुछ 

ये जजबातों से भरा समंदर दो पलखों पे तोल रहे हैं 
ये नैना क्या कुछ बोल रहे हैं           || मुखडा || 

इनमें मुश्किल से सवाल हैं 
इनमें अनजाने जवाब हैं 
आसान नही, पढकर देखो, 
ये पहेलियों की किताब हैं 

कुछ राज दबे, कुछ रिवायतें 
कुछ कहानियाँ, कुछ हकीकतें 
कुछ उम्मीदें, कुछ शिकायतें 
कुछ गुजारिशें, कुछ इजाजतें 

ये कई अनकही बातों का जादुई पिटारा खोल रहे हैं 
ये नैना क्या कुछ बोल रहे हैं          || अंतरा-१ || 

इनमें धरती की व्याकुलता, 
इनमें अंबर की फुहार भी 
इनमें साहिल का सन्नाटा, 
इनमें लहरों की पुकार भी 

गहराई इनकी नाप सके, वो हुनर किसी के पास नही 
गर झाक लिया इनमें गौर से, उभरने की कुछ आस नही 

आवाज लगाकर बुला रहे हैं, या दूर से टटोल रहे हैं ?! 
ये नैना क्या कुछ बोल रहे हैं             || अंतरा-२ || 

- अनामिक 
(२९/०८/२०२१ - ०१/०९/२०२१)