12 अक्तूबर 2018

उड चला इक ख्वाब

इक ख्वाब पलखों से फिसलकर उड चला.. 

इक ख्वाब पलखों से फिसलकर उड चला दूजे नगर 
इक ख्वाब आँखों से उछलकर चल पडा अपनी डगर 

इक ख्वाब दिल की बंदिशों को तोडकर है उड चला 
इक ख्वाब ठहरी ख्वाइशों को छोडकर है उड चला 

वो गुदगुदी था, या चुभन ? 
था सर्द ठंडक, या जलन ? 

सच था, भरम, या झूठ था ? 
तेजाब का वो घूँट था ? 

रिमझिम खुशी की बारिशें ? 
या दर्द का सैलाब था ? 

जैसा भी था.. नायाब था 
सबसे सलोना ख्वाब था 

- अनामिक 
(०५/०६/२०१८ - १२/१०/२०१८)