15 जून 2021

सपनें तो सपनें होते हैं

सपनें तो सपनें होते हैं
अल्हड और भोले होते हैं 
अकल कहा होती है इनको ?! 
बिलकुल पगले होते हैं 

कहा समझ आता है इनको मुमकिन-नामुमकिन का अंतर ?! 
अफसानों के दर्या में डुबकियाँ लगाते हैं ये अक्सर 

कुछ सपनें मन के पिंजरे में बंधे हुए रह जाते हैं 
बेफिक्री के पंख लगाकर कुछ सपनें उड जाते हैं 

        कुछ सपनें अखियों के रस्ते गालों पर बह जाते हैं 
        कुछ सपनें आसमान छूने किस्मत से लड जाते हैं 

कुछ सपनें वास्तव की गहरी मिट्टी में गड जाते हैं 
कुछ सपनें अंकुर बनकर धरती चीरकर दिखाते हैं 

        कुछ सपनें मासूम कली से खिले बिना झड जाते हैं 
        कुछ सपनें मोगरे की तरह गुलशन को महकाते हैं 

जो भी हो, जैसे भी हो ये.. 
नादाँ ही रहने दो इनको 
मनमौजी झरनों के जैसे बेमंजिल बहने दो इनको 

गलती से भी समझदार या होशियार ये बन जाए तो..
मनुष्य ये कहलाएंगे..
सपनें थोडी रह पाएंगे ?! 

सपनें तो तारों जैसे अंधियारी रात चमकते हैं 
इसीलिए तो शकल बिना भी बेहद सुंदर दिखते हैं 

- अनामिक 
(०१/०५/२०२१ - १५/०६/२०२१)

01 जून 2021

सब कह दिया

पलखों के चिलमन ने    नैनों के दर्पण ने
नजरों से नजरों ने       सब कह दिया

गालों की सुर्खी ने       मुस्काते चेहरे ने
बिन बोले अधरों ने      सब कह दिया

दर्या की महफिल में     ख़्वाबीदा साहिल से
जज़बाती लहरों ने       सब कह दिया

खुशबू की बोली में      धरती के कानों में
बरखा बौछारों ने        सब कह दिया 
|| मुखडा ||

दिन था वो, या था      कोई अफसाना
जिस दिन किस्मत से ही मिल पाए थे हम

दो कदमों का, पर     दो जनमों जितना
रस्ता दो पल में संग चल पाए थे हम

नैनों से छलकी         खुशियों की भीनी
रिमझिम ने सब कह दिया

दिल की तारों ने        धडकन में छेडी
सरगम ने सब कह दिया

आहिस्ता, होले से      छूकर एहसासों को
हाथों के रेशम ने       सब कह दिया

दो दिल की गलियों में खिलते गुलमोहरों से
ख्वाबों के मौसम ने    सब कह दिया
|| अंतरा-१ ||

फिर कब हो मिलना   मुश्किल था कहना
काश यूँ ही सदियों चलती अपनी बातें

बोझल थी साँसें         पर हसते हसते
निकले हम लेकर यादों के गुलदस्तें

आगे बढकर भी        पीछे ही मुडते
कदमों ने सब कह दिया

सपनों में हर दिन      मिलते रहने की
कसमों ने सब कह दिया
|| अंतरा-२ ||

- अनामिक
(१३/०६/२०२० - ०१/०६/२०२१)