अल्हड और भोले होते हैं
अकल कहा होती है इनको ?!
बिलकुल पगले होते हैं
कहा समझ आता है इनको मुमकिन-नामुमकिन का अंतर ?!
अफसानों के दर्या में डुबकियाँ लगाते हैं ये अक्सर
कुछ सपनें मन के पिंजरे में बंधे हुए रह जाते हैं
बेफिक्री के पंख लगाकर कुछ सपनें उड जाते हैं
कुछ सपनें अखियों के रस्ते गालों पर बह जाते हैं
कुछ सपनें आसमान छूने किस्मत से लड जाते हैं
कुछ सपनें वास्तव की गहरी मिट्टी में गड जाते हैं
कुछ सपनें अंकुर बनकर धरती चीरकर दिखाते हैं
कुछ सपनें मासूम कली से खिले बिना झड जाते हैं
कुछ सपनें मोगरे की तरह गुलशन को महकाते हैं
जो भी हो, जैसे भी हो ये..
नादाँ ही रहने दो इनको
मनमौजी झरनों के जैसे बेमंजिल बहने दो इनको
गलती से भी समझदार या होशियार ये बन जाए तो..
मनुष्य ये कहलाएंगे..
सपनें थोडी रह पाएंगे ?!
मनुष्य ये कहलाएंगे..
सपनें थोडी रह पाएंगे ?!
सपनें तो तारों जैसे अंधियारी रात चमकते हैं
इसीलिए तो शकल बिना भी बेहद सुंदर दिखते हैं
- अनामिक
(०१/०५/२०२१ - १५/०६/२०२१)