28 अगस्त 2019

मैं सूरज की परछाई

मैं सागर की गहराई हूँ
मैं अंबर की ऊँचाई भी
मैं किरणों की अपार ऊर्जा
मैं सूरज की परछाई

मैं संध्या की मोहकता भी
मैं साहिल की विनम्रता भी
मैं लहरों की चंचलता भी
मैं बिजली की शहनाई

मैं धरती की विशालता भी
मैं पानी की शीतलता भी
मैं बादल की नरमाई भी
मैं पत्थर की कठिनाई

मेरे कदम रोककर दिखाओ
या हौसला तोडकर दिखाओ
नन्ही समझ न धोखा खाओ
मैं सूरज की परछाई

- अनामिक
(२६,२८/०८/२०१९)

24 अगस्त 2019

हवा के सर्द झोंके सी

हवा के सर्द झोंके सी तू लहराती चली आए 
बहे दिल जर्द पत्ते सा, गगन में सुर्ख ख्वाबों के 

घडीभर ही सही, छूकर तू इठराती चली जाए 
उडे दिल शोख तितली सा, बगीचों में गुलाबों के      || मुखडा || 

अचानक ही तू आते ही 
शहद सी मुस्कुराते ही 
लगे यूँ, धूप में जलती गिरे बौछार सावन की 
जरा खट्टी, जरा मीठी 
भले दो-चार बातें ही 
लगे यूँ, बिखर जाए खुशबुएँ हर ओर चंदन की 

बहकने फिर लगे दिल बिन पिए ही, बिन शराबों के 
उडे दिल शोख तितली सा, बगीचों में गुलाबों के      || अंतरा-१ || 

तू पतझड में बहारों सी 
अमावस में सितारों सी 
की रेगिस्तान में आए तू लेकर बाढ नदियों की 
बहोत कुछ बात हो ना हो 
उमरभर साथ हो ना हो 
लगे यूँ, जिंदगी जी ली घडीभर में ही सदियों की 

न फिर कुछ मायने रहते सवालों के, जवाबों के 
उडे दिल शोख तितली सा, बगीचों में गुलाबों के      || अंतरा-२ || 

- अनामिक 
(२०/०५/२०१९ - २४/०८/२०१९) 

04 अगस्त 2019

चलता रहे यूँ ही सफर

जो साथ तेरे है शुरू
दो-चार लम्हों का सफर
ना खत्म हो, ​​चलता रहे यूँ उम्रभर 
                जो बात तुझसे है छिडी 
                दो लब्ज, या इक दासताँ 
                वो गीत सी घुलती रहे शामो-सहर || मुखडा ||

तू बिन कहे भी मैं सुनू
खामोशियों की भी जुबाँ
तेरी उदासी, या खुशी
बेचैनियाँ, या ख्वाइशें 
                जिनसे खिले गुमसुम लबों पे 
                मुस्कुराहट की कली 
                ना इल्म भी जिनका तुझे 
                मैं सब करू वो कोशिशें

तेरे नयन के ख्वाबों में
मैं हौसलों के रंग भरू 
                मंजिल चुने तू, और बनू मैं रहगुजर 
                ना खत्म हो, चलता रहे यूँ ही सफर || अंतरा ||

- अनामिक
(०४/०८/२०१९) 

31 जुलाई 2019

खामोशियाँ

खामोशियाँ.. खामोशियाँ.. खलती रहे खामोशियाँ
अंगार सी बुझती रहे, जलती रहे खामोशियाँ

क्यों बात होकर भी बहोत बढती रहे खामोशियाँ
क्यों साथ होकर दर्मियाँ चलती रहे खामोशियाँ

क्यों बेरुखी के रूप में बहती रहे खामोशियाँ
क्यों कुछ न कहकर भी बहोत कहती रहे खामोशियाँ

क्यों सांज की दहलीज पर मिलती रहे खामोशियाँ
क्यों रात की चादर तले छलती रहे खामोशियाँ

खामोशियाँ.. खामोशियाँ.. खलती रहे खामोशियाँ
चुभते धुएँ सी साँस में घुलती रहे खामोशियाँ

- अनामिक
(३०,३१/०७/२०१९)

25 जुलाई 2019

एक पहेली

पहेलियों ही पहेलियों से भरी पडी है दुनिया सारी
पर जितनी भी पहेलियाँ हो, चाहे तरह तरह की, न्यारी
सौ पहेलियाँ सुलझाने में मुझे न कुछ दिलचस्पी है
सुलझा लू वो एक पहेली, बस इतना ही काफी है

एक पहेली..
अंतरिक्ष के तारों की नक्काशी जैसी
जितनी दिलकश, उतनी गहरी
जिसका कोई छोर नही
भीतर कोलाहल या संगीत
बाहर बिलकुल शोर नही

एक पहेली..
मोरपंख पे रची हुई रंगोली जैसी
लुभावनी, पर जटिल बडी ही
नाजुक, पर कमजोर नही

जितनी मोहक, उतनी मुश्किल
एक पहेली.. जो सुलझाने
उम्र खर्च दू, तो भी कम है
मिल जाए हल, ना मिल पाए
उलझा रहू उम्रभर यूँ ही
ना भी सुलझी, ना गम है

- अनामिक
(२९/०५/२०१९ - २५/०७/२०१९)

27 मई 2019

पहेलियाँ

पहेलियाँ ही पहेलियाँ हैं
शख्सों की, शख्सियतों की
चेहरों के परदों के पीछे छुपी हुई​​ असलियतों की

चलती-फिरती पहेलियाँ हैं इन्सानों के लिबास में
उलझ न जाओ खुद ही इनको सुलझाने के प्रयास में

किसको जानो ? कितना जानो ?
जिसको भी, जितना भी जानो.. 

जितनी भी नापो गहराई, उससे भी गहरा पानी है
जितनी भी मानो सच्चाई, बिलकुल अलग कहानी है

एक पहेली बूझो तो, झटसे दूजी भी हाजिर है
जिसको जितना समझो भोला, वो उतना ही शातिर है

प्याज की घनी परतों जैसे
सारे परदें खुल जाए जब
मन में थी जो छवी बनी,
उससे कुछ ना मिल-जुल पाए जब

जितनी भी दो मन को तसल्ली
सुद-बुद से समझी और परखी जितनी भी झुठला दो बातें
सच तो सच ही आखिर है

यहा पहेली बनकर जीने में हर कोई माहिर है

- अनामिक
(२६,२७/०५/२०१९)

17 मई 2019

लिखेंगे और ज्यादा

रहे स्याही-कलम जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा
न हो सपनें खतम जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा

खिले खुशियाँ, या बरसे गम.. लिखेंगे और ज्यादा
रहे हम कल, रहे ना हम.. लिखेंगे और ज्यादा

किसी मुस्कान की सरगम.. किसीके नैन की शबनम
किसीकी जुल्फ का रेशम.. लिखेंगे और ज्यादा

कोई पढकर सराहे.. तो लिखेंगे और ज्यादा
या पढना भी न चाहे.. तो लिखेंगे और ज्यादा

जले दिल की शमा जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा
न छू ले आसमाँ जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा

- अनामिक
(१६/०५/२०१९)

14 मई 2019

शर्त

मैं नींद अपनी हार दू.. सुख, चैन, राहत हार दू 
तेरी गुलाबी मुस्कुराहट पे मैं जन्नत हार दू 

दिल हार दू तुझपे सखी मैं.. होश, सुद-बुद हार दू 
तेरी छवी के सामने खुदका वजूद हार दू 

दौलत लगा दू दाव पे.. पूँजी, कमाई हार दू 
तुझसे छिडी छोटी-बडी हर जंग-लडाई हार दू 

दिन क्या ? महीनें क्या ? उमर भी गुजार दू तेरे लिए 
मैं मुस्कुराकर जिंदगी भी हार दू तेरे लिए 

क्या कुछ न न्योछावर करू मैं ?! फिर सखी तू ही बता.. 
तुझसे लगी इक "शर्त" भी क्या जीतने की चीज है ?! 

कुछ जीतना ही है सखी, दिल में जगह मैं जीत लू 
तेरी खुशी की, मुस्कुराहट की वजह मैं जीत लू 

जजबात तेरे जीत लू मैं.. साथ तेरा जीत लू 
बनने जनम का हमसफर मैं हाथ तेरा जीत लू 

छू लू तेरे अरमान.. ख्वाबों का जहाँ मैं जीत लू 
फिर पूछ लू वो इक सवाल.. जवाब "हाँ" मैं जीत लू 

क्या कुछ नही है हारने को, जीतने को ?! फिर बता.. 
इक "शर्त" मामूली भला क्या जीतने की चीज है ?! 

तू जीते, या मैं जीत लू.. ये दोनो इक ही बात है 
तेरी खुशी ही, जीत ही मेरी मुकम्मल जीत है 

- अनामिक 
​(१५/०२/२०१९ - ०४/०३/२०१९, १४/०५/२०१९) ​​

12 मई 2019

पाहिले तुज ज्या क्षणी

थक्क झालो, दंग झालो
स्तब्ध झालो, गुंग झालो
मग्न झालो, मुग्ध झालो
तृप्त झालो, लुब्ध झालो

तप्त ग्रीष्माच्या दुपारी
सर बरसली श्रावणी
अप्सरेसम रुप तुझे ते
पाहिले मी ज्या क्षणी || धृ ||

                        भरजरी लावण्य लेवुन
                        तू अशी येता समोरी
                        उमटले प्रतिबिंब गहिरे
                        भारलेल्या अंतरी

                        स्वर्गलोकातून अवतरली
                        परी जणु अंगणी
                        थक्क झालो, दंग झालो
                        पाहिले तुज ज्या क्षणी || १ ||

चांदण्या पडल्या फिक्या
लखलख तुझ्या तेजामुळे
चंद्रमा ठरलीस तू
सगळेच उरले ठोकळे 

पूर आला नक्षत्रांचा
काळोख्या तारांगणी
थक्क झालो, दंग झालो
पाहिले तुज ज्या क्षणी || २ ||

                        श्वास अडला चार घटका
                        थांबला हृदयात ठोका
                        राहिले उघडेच डोळे
                        जणु विजेचा सौम्य झटका 

                        मी कसे शुद्धीत यावे ?
                        काढे ना चिमटा कुणी
                        थक्क झालो, दंग झालो
                        पाहिले तुज ज्या क्षणी || ३ ||

- अनामिक
(११-२२/०३/२०१९, १२/०५/२०१९)

04 मई 2019

ऐ चाँद.. तू ही है पसंद

कल था महूरत खास कुछ
लंबी अमावस बाद फिर
जो छुप गया था बादलों में
कल मिला था चाँद फिर

गप्पें किए फिर खूब उसने
फिर मजाक-मजाक में
उसने ही छेडी बात खुद
की "कौन है तुमको पसंद ?"

मैं मन ही मन में हस दिया
फिर कश्मकश में पड गया

अब चाँद को कैसे कहू ?
"ऐ चाँद.. तू ही है पसंद
दिल के, नजर के दायरों में
शायरी के अक्षरों में
बासुरी के सब सुरों में
सिर्फ तू ही है बुलंद"

पर क्या करू ? मजबूर था
होकर जुबाँ पर नाम उसका मैं बता पाया नही
क्या ही पता ? सच जानकर,
होकर खफा अंबर में वो खिलना न बंद कर दे कही

मैं इसलिए बस मुस्कुराया
और बोला, "है कोई.."
खुद जान न पाए,
चाँद इतना नासमझ भी तो नही

- अनामिक
(०३,०४/०५/२०१९)

31 मार्च 2019

तुझे हासणे

नितळ, निरामय, निखळ, निरागस
दिलखुलास, निर्भेळ, निखालस
धुंद, मुक्त, निर्मळ अन् गोंडस
लहानग्यागत तुझे हासणे

                              गडगडणाऱ्या नभासारखे
                              कोसळत्या धबधब्यासारखे
                              झुळझुळत्या निर्झरासारखे
                              उसळत्या कारंज्यासारखे
                              सळसळत्या वादळासारखे
                              खळखळत्या सागरासारखे
                              स्वच्छंदी पाखरासारखे

रुणझुणत्या पैंजणांसारखे
गुणगुणत्या कोकिळेसारखे
चिमणीच्या चिवचिवीसारखे
कर्णमधुर भैरवीसारखे
लाटांच्या संगितासारखे
रिमझिमणाऱ्या सरींसारखे
कृष्णाच्या बासरीसारखे

                              किती मधुर अन् किती रसाळ
                              काजूकतली, खिरीसारखे
                              बासुंदी अन् पुरीसारखे
                              मोतीचूर लाडवासारखे
                              आंब्याच्या गोडव्यासारखे
                              रसरसल्या पोळ्यातुन टपटप
                              ओघळणाऱ्या मधासारखे
                              जखमेवर औषधासारखे

कोमेजलेल्या कळीला पुन्हा
फुलण्याच्या प्रेरणेसारखे
मरगळलेल्या आयुष्याला
जणू नव्या चेतनेसारखे

                              असेच नेहमी चमकत राहो
                              बरसत राहो तुझे हासणे
                              पुनवेच्या चांदण्यासारखे
                              हिरव्यागार श्रावणासारखे

- अनामिक
(२१/०२/२०१९, ३०/०३/२०१९)

10 फ़रवरी 2019

ती

अल्लड, अवखळ अन् उत्श्रृंखल
निखळ, खोडकर, नटखट, चंचल

दिलखुलास, लहरी, स्वानंदी
बेधुंद, बेफिकिर, स्वच्छंदी
निडर, धीट, बिनधास्त, बेधडक
कधी विचारी, हळवी, भावुक

गोजिरवाणी, गोड, लाजरी
अन् लडिवाळ, लाघवी, हसरी
नाजुक, मोहक, मखमल, कोमल
दीप्त, प्रखर, तेजस्वी, उज्ज्वल

चैतन्याचा, उत्साहाचा
अन् ऊर्जेचा अखंड श्रावण

अनंत छटा व्यक्तिमत्वाच्या
असंख्य पैलू अस्तित्वाचे
पुरे न पडती विशेषणांचे रंग
तिचे करताना चित्रण

- अनामिक
(२४-३१/०१/२०१९, १०/०२/२०१९)

09 फ़रवरी 2019

मिठास

शक्कर के दानों सी तेरी छोटीसी, पर मीठी बातें
नाजुक होंठों पर मिश्री की डलियों जैसी मुस्कुराहटें
लब्जों से चाशनी छलकती, नजरों में शरबत की नदिया
गुलाबजामुन से गालों पर शहद सी शर्म-हया की छींटें

इतनी ज्यादा मिठास तेरी
जितनी भी पीकर जी भरकर भर लू इन नैनों के प्यालें
इस दिल को ना मिले राहतें

जितनी कर लू बातें तुझसे
जितनी जी लू सोहबत तेरी
जितनी पी लू खूबसूरती
और बढे ये अजब प्यास है
मिठास ही ये मर्ज है दिल का
इलाज भी ये मिठास है

- अनामिक
(१७,१८/०१/२०१९, ०९/०२/२०१९)

06 फ़रवरी 2019

चाबी

मैं लाख लगा लू पेहरें दिल पे, तालें डालू जुबान पे
मैं जजबातों के तीर रोक लू इन पलखों की कमान पे

पर..
तेरे कदमों की आहट मैं
तेरी नजरों की हरकत में
तेरी हसीं मुस्कुराहट में वो जादूई खूबी है
और तेरे पास वो दो बातों की मि​​ठास की चाबी है,

जिससे..
हर इक ताला खुल जाए
और हर इक पेहरा ढल जाए
हर पत्थर सख्त पिघल जाए
संभले जजबात फिसल जाए

मैं मुश्किल से परहेज करू तुझसे, पर तू आसानी से..
सब व्रत मेरे तुडवाती है तू अपनी इक शैतानी से

- अनामिक
(२७/११/२०१८, ​०६/०२/२०१९)

04 फ़रवरी 2019

सदाफुली

फुलपाखरासारखी चंचल 
झुळझुळ झऱ्यासारखी अवखळ 
इवल्या मुलासारखी अल्लड 
अन् कारंज्यागत उत्श्रृंखल

                            श्रावण-सरींसारखी लहरी 
                            हवेसारखी निखळ, खेळकर 
                            नदीसारखी स्वच्छंदी, अन् 
                            लाटांगत बेधुंद, बेफिकिर

चिऊसारखी अथक बोलकी 
मधासारखी गोड, लाजरी 
सदाफुलीसारखी सदैव 
टवटवीत, स्वानंदी, हसरी

                            गुलाबासारखी मनमोहक 
                            मोरपिसागत मखमल, कोमल 
                            विजेसारखी प्रखर, तळपती 
                            अन् तारकांसारखी तेजल

चैतन्याचा पाउस रिमझिम 
प्रसन्नतेचा पूर निरंतर 
उत्साहाची उदंड भरती 
अमर्याद ऊर्जेचा सागर

                            किती रंग उपमांचे भरले 
                            अपूर्ण तरिही वाटे चित्रण 
                            शक्य नसे शब्दांनी करणे 
                            तिच्या व्यक्तिमत्वाचे वर्णन 

- अनामिक 
(२४/०१/२०१९ - ०४/०२/२०१९) 

04 जनवरी 2019

आगे चला

वो जंग लगी सब बेडियाँ
मैं तोडकर आगे चला
बेदर्द फर्जी दोस्तियाँ
मैं छोडकर आगे चला

सब मतलबी चेहरों से मैं
मुह मोडकर आगे चला
नकली, फरेबी सब मुखौटें
फाडकर आगे चला

अंधा भरोसा आँख से
मैं झाडकर आगे चला
खोखले भरम के बुलबुलें
मैं फोडकर आगे चला

बेजान रिश्तों के सडे शव
गाडकर आगे चला
मक्कार धोखेबाज जग से
दौडकर आगे चला

- अनामिक
(०१/०५/२०१८ - ०४/०१/२०१९)