27 मई 2019

पहेलियाँ

पहेलियाँ ही पहेलियाँ हैं
शख्सों की, शख्सियतों की
चेहरों के परदों के पीछे छुपी हुई​​ असलियतों की

चलती-फिरती पहेलियाँ हैं इन्सानों के लिबास में
उलझ न जाओ खुद ही इनको सुलझाने के प्रयास में

किसको जानो ? कितना जानो ?
जिसको भी, जितना भी जानो.. 

जितनी भी नापो गहराई, उससे भी गहरा पानी है
जितनी भी मानो सच्चाई, बिलकुल अलग कहानी है

एक पहेली बूझो तो, झटसे दूजी भी हाजिर है
जिसको जितना समझो भोला, वो उतना ही शातिर है

प्याज की घनी परतों जैसे
सारे परदें खुल जाए जब
मन में थी जो छवी बनी,
उससे कुछ ना मिल-जुल पाए जब

जितनी भी दो मन को तसल्ली
सुद-बुद से समझी और परखी जितनी भी झुठला दो बातें
सच तो सच ही आखिर है

यहा पहेली बनकर जीने में हर कोई माहिर है

- अनामिक
(२६,२७/०५/२०१९)

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