04 मई 2019

ऐ चाँद.. तू ही है पसंद

कल था महूरत खास कुछ
लंबी अमावस बाद फिर
जो छुप गया था बादलों में
कल मिला था चाँद फिर

गप्पें किए फिर खूब उसने
फिर मजाक-मजाक में
उसने ही छेडी बात खुद
की "कौन है तुमको पसंद ?"

मैं मन ही मन में हस दिया
फिर कश्मकश में पड गया

अब चाँद को कैसे कहू ?
"ऐ चाँद.. तू ही है पसंद
दिल के, नजर के दायरों में
शायरी के अक्षरों में
बासुरी के सब सुरों में
सिर्फ तू ही है बुलंद"

पर क्या करू ? मजबूर था
होकर जुबाँ पर नाम उसका मैं बता पाया नही
क्या ही पता ? सच जानकर,
होकर खफा अंबर में वो खिलना न बंद कर दे कही

मैं इसलिए बस मुस्कुराया
और बोला, "है कोई.."
खुद जान न पाए,
चाँद इतना नासमझ भी तो नही

- अनामिक
(०३,०४/०५/२०१९)

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