तेरी गुलाबी मुस्कुराहट पे मैं जन्नत हार दू
दिल हार दू तुझपे सखी मैं.. होश, सुद-बुद हार दू
तेरी छवी के सामने खुदका वजूद हार दू
दौलत लगा दू दाव पे.. पूँजी, कमाई हार दू
तुझसे छिडी छोटी-बडी हर जंग-लडाई हार दू
दिन क्या ? महीनें क्या ? उमर भी गुजार दू तेरे लिए
मैं मुस्कुराकर जिंदगी भी हार दू तेरे लिए
क्या कुछ न न्योछावर करू मैं ?! फिर सखी तू ही बता..
तुझसे लगी इक "शर्त" भी क्या जीतने की चीज है ?!
कुछ जीतना ही है सखी, दिल में जगह मैं जीत लू
तेरी खुशी की, मुस्कुराहट की वजह मैं जीत लू
जजबात तेरे जीत लू मैं.. साथ तेरा जीत लू
बनने जनम का हमसफर मैं हाथ तेरा जीत लू
छू लू तेरे अरमान.. ख्वाबों का जहाँ मैं जीत लू
फिर पूछ लू वो इक सवाल.. जवाब "हाँ" मैं जीत लू
क्या कुछ नही है हारने को, जीतने को ?! फिर बता..
इक "शर्त" मामूली भला क्या जीतने की चीज है ?!
तू जीते, या मैं जीत लू.. ये दोनो इक ही बात है
तेरी खुशी ही, जीत ही मेरी मुकम्मल जीत है
- अनामिक
(१५/०२/२०१९ - ०४/०३/२०१९, १४/०५/२०१९)
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