10 मार्च 2022

सादगी

​जो मोगरे में है महक, दिलकश गुलाबों में कहाँ ?!.. 
जो है नजाकत चाँद में, झिलमिल सितारों में कहाँ ?!.. 

जो जुगनुओं में है चमक, उजले सवेरों में कहाँ ?!.. 
जो बासुरी में है मिठास, झन झन गिटारों में कहाँ ?!.. 

जो बात खामोशी जताए, सौ जवाबों में कहाँ ?!.. 
जो राज पलखों में छुपे, परदों-नकाबों में कहाँ ?!.. 

जो आँच आंगन के दिये में है, शरारों में कहाँ ?!.. 
जो है अदब बहती नदी में, आबशारों में कहाँ ?!.. 

जो रंग हैं नन्ही तितलियों में, इंद्रधनुषों में कहाँ ?!.. 
जो सादगी में नूर है, सोला सिंगारों में कहाँ ?!.. 

- अनामिक 
(०७-१८/११/२०२१, १०/०३/२०२२) 

बेसमय के अश्क

ये बेसमय के अश्क तेरे           बेसबब तो हैं नही
गर दर्द छलका है नयन से        टीस गहरी है कही

"बस यूँ ही" कहकर टाल दे तू,   ना बता, क्या है कमी
पर देखकर रिमझिम नयन        मेरी फिकर है लाजमी
ये बेसमय के अश्क तेरे                     || मुखडा ||

गुमसुम रहे, कुछ ना कहे         बेचैन या तनहा रहे
पढकर नजर पहचान लू           तू जो चुभन भीतर सहे

मन में उठे क्या पीड़ मेरे          कर न पाऊ मैं बयाँ
जब अश्क की इक बूँद भी        तेरी निगाहों से बहे

इन मोतियों के मोल का           कुछ इल्म ही तुझको नही
ज़ाया न हो ये, इस लिए           कर दू न्योछावर जर-जमीं
ये बेसमय के अश्क तेरे                       || अंतरा-१ ||

ये दो नयन, हैं दो सितारें          पहचान इनकी रोशनी
तू ढूँढ ले खुदकी सहर            अंधियारा हो, या चाँदनी

ये ही दुआ मांगू खुदा से           खुश रहे तू हर घडी
खिलती रहे मुस्कान की            तेरे लबों पे पंखुडी

तू जिस डगर रख दे कदम        हो जीत ही आगे खडी
तू हौसलों की डोर से              सौ ख्वाब बुन ले रेशमी
ये बेसमय के अश्क तेरे                    || अंतरा-२ ||

- कल्पेश पाटील 
(०१/०५/१९ - १०/०३/२२)