31 दिसंबर 2016

ऐ गुजरते साल

ऐ गुजरते साल, तुमने बिन कहे क्या कुछ दिया 
लब्ज भी कम पड रहे करने तुम्हारा शुक्रिया 

कुछ पुराने दोस्त छूटे, कुछ नये साथी मिले 
कुछ सुहाने ख्वाब रूठे, कुछ हसीं सपनें खिले 

बेजान कविता, शायरी को मिल गयी संजीवनी 
दिलकश धुनें खामोश मन को फिर लगी हैं सूझनी 

घूमने के शौक ने भी मंजिलें ढूँढी नयी 
और भीतर के मुसाफिर ने मकाम पाए कई 

हाँ ठीक है, जाते हुए तुमने भिगाए नैन है 
पर लबों की ये हसी भी तो तुम्हारी देन है 

- अनामिक 
(३०,३१/१२/२०१६) 

22 दिसंबर 2016

तोहफा

दूर शहर से लाए उस तोहफे का मुझसे सवाल है 
"लाए हो जिनके लिए, उन्हे कब देने का खयाल है ? 

दराज में ही रखना था, तो इतनी याद से लाए ही क्यों ? 
उनके पास पहुँचने अब बेसब्री से बुरा हाल है" 

मैंने बोला, "तू तो क्या, मैं चाँद तोडकर भी ला दू 
पर एक चाँद को चाँद दूसरा देने में क्या कमाल है ? 

सब्र रख, तुझे सही वक्त पे नजराने सा पेश करू 
उनको भी तो लगे, की देनेवाला भी बेमिसाल है" 

- अनामिक 
(०८,२१,२२/१२/२०१६) 

19 दिसंबर 2016

इंतजार नही

हाँ, आज भी खुले हैं दिल के खिडकी दरवाजें तेरे लिए 
पर अब आँखों की चौखट को तेरा कोई इंतजार नही 

तू आए तो बाहें खोले जिंदगी करेगी स्वागत ही 
पर ना भी आए, तो भी कोई गम, शिकवा, तकरार नही 

हाँ, कभी कभी तेरे खयाल की तितली उडती हैं मन में 
पर जजबातों के फूलों में अब बचा महकता प्यार नही 

गलती से छिडता है गिटार पे तुझपे रचा हुआ नगमा 
पर गिटार की तारों में अब वो पहले की झनकार नही 

माना पत्थर पे तराशे हुए नाम मिटाना मुश्किल हैं 
पर वक्त की दवा से न ठीक हो, ऐसा कोई वार नही 

- अनामिक 
(१८,१९/१२/२०१६) 

14 दिसंबर 2016

सफर

कभी इस शहर, कभी उस नगर
कभी ये गली, कभी वो डगर
रुकने का ना नाम ले रहा
शुरू हुआ इक बार जो सफर ॥ धृ ॥

कभी पर्बतों की ऊँचाई
कभी नदी की गहराई
कभी पत्थरों की सुंदरता
कभी किले की तनहाई
चख लेती है कितने मंजर
तितली बनकर शोख नजर ॥ १ ॥

हर हफ्ते है नया ठिकाना
नक्शे पर इक नया निशाना
हो ना हो जाने की मनशा
बन जाए खुद-ब-खुद बहाना
बंधा ही रखू अपना बस्ता
आए बुलावा, चलू बेफिकर ॥ २ ॥

- अनामिक
(११-१४/१२/२०१६)

08 दिसंबर 2016

महूरत

इक बात भी करने कभी यूँ तो न फुरसत है तुम्हे 
कैसे मिला फिर आज आने का महूरत है तुम्हे ? 

अब आ गए संजोग से, तो चार पल संग बैठ लो 
कुछ खैर मेरी पूछ लो, कुछ हाल अपना बाँट लो 

मैं मन ही मन में रोज तुम से अनगिनत गप्पें करू 
पर सूझ कुछ भी ना रहा, जब आज हो तुम रूबरू 

बस काम की और काज की ही बात कब से चल रही 
पर क्या करू ? तुमको अलग कुछ जिक्र ही भाता नही 

जो बस चले मेरा अगर, दिन भर यही बैठे रहे 
ना हो जुबाँ से बात भी, सब कुछ निगाहों से कहे 

पर दो मिनट में तुम कहोगे, "देर काफी हो गयी" 
तुम टोकने से पहले ही मैं खुद कहू, "निकले अभी" 

अब उठ गए, तो सूझती हैं सैंकडों बातें भली 
अफसोस, अब बस दो कदम पर है जुदा अपनी गली 

मदहोश रह लू आज, ख्वाबों का खिला जो गुलसिताँ 
आए न आए फिर कभी ऐसा महूरत, क्या पता ? 

- अनामिक 
(०२-०८/१२/२०१६) 

04 दिसंबर 2016

ठीक है

रचता गया मैं तारिफों के फूल उसकी राह में
उसने कहा बस, "ठीक है"
लिखता गया कितने सुहाने गीत उसकी चाह में
उसने कहा बस, "ठीक है"

उसके लबों मुस्कान लाने की सदा की कोशिशें
मांगे बिना करता रहा पूरी सभी फर्माइशें
जो बन सका, सब कुछ किया उसकी फिकर, पर्वाह में
ना लब्ज कम पडने दिए उसकी स्तुती, वाह-वाह में
उसने कहा बस, "ठीक है"

उसकी हथेली में सजा दू चाँद-तारें भी अगर
रुख मौसमों का मोडकर ला दू बहारें भी अगर
वो बस कहेगी, "ठीक है"
मैं तितलियों से रंग चुराकर जिंदगी उसकी भरू
मैं बिजलियों को तोड उसके पैर की पायल करू
वो बस कहेगी, "ठीक है"

वो है अगर यूँ बेकदर, सब जानकर भी बेखबर
मैं सोचता हूँ, बस हुआ.. अब मोड लू अपनी डगर
मैं भी कहू अब, "ठीक है"

- अनामिक
(३०/११/२०१६ - ०४/१२/२०१६)

21 नवंबर 2016

प्रतीक्षा

शांत आहे आज सागर
सुन्न आहे सांजवारा
लाट चंचल स्तब्ध आहे
मौन पांघरुनी किनारा
ये सखे परतून लवकर, अंत बघते ही प्रतीक्षा
बघ कसे अस्वस्थ सारे फक्त नसण्याने तुझ्या ॥ धृ ॥

रोजची ती पाखरांची धुंद किलबिल बंद आहे
पौर्णिमेच्या चांदव्याचे चांदणेही मंद आहे
आठवण येता तुझी होतो मनी नुसता पसारा
ये अता, चैतन्य पसरव गोड हसण्याने तुझ्या ॥ १ ॥

चार दिवसांचा दुरावा, युग उलटल्यासारखा
वाट बघुनी क्षीण झाल्या अंबरातिल तारका
बेचैन भिरभिरते नजर, पण सापडत नाही निवारा
तृप्त कर व्याकुळ मना अवचित बरसण्याने तुझ्या ॥ २ ॥

- अनामिक
(१३-२१/११/२०१६)

19 नवंबर 2016

क्या पसंद आए

खुदा ही तय करे, किसको किसी में क्या पसंद आए
किसे रंग-रूप, किसको मखमली काया पसंद आए

किसे तीखी निगाहें, शरबती आँखें लुभाती हैं
किसे लहराती जुल्फों का घना दर्या पसंद आए

किसी को गाल की लाली, किसे काजल सुहाता है
किसे नाजुक लबों की सुर्ख पंखुडियाँ पसंद आए

किसे नखरें पसंद, कोई अदाओं का है दीवाना
किसे सिंगार, झुमकें, चूडियाँ, बिंदिया पसंद आए

ये सब कुछ हो न हो तुझ में, मुझे ना फर्क पडता है
मुझे बस सादगी तेरी, शर्मो-हया पसंद आए

- अनामिक
(२८/१०/२०१६, १८,१९/१२/२०१६)

12 नवंबर 2016

आशियाना

गुमराह पत्ते की तरह था उड रहा सपना पुराना
अब ठिकाना मिल गया
दिल चाहता था उस जगह, छोटा सही, पर इक सुहाना
आशियाना मिल गया                                  ॥ धृ ॥

अटके पडे थे सुर सभी गुमसुम लबों की कैद में
सोए हुए थे गीत भी सूखी कलम की गोद में
इक बांसुरी गूँजी अचानक,
बेजुबाँ इस जिंदगी को इक तराना मिल गया
आशियाना मिल गया                                  ॥ १ ॥

कुछ बीज धरती में दफन थे, बारिशों की प्यास में
बेताब थे अंकुर दबे, संजीवनी की आस में
बरसी घटा, कलियाँ खिली,
बंजर जमीं को आज फूलों का खजाना मिल गया
आशियाना मिल गया                                  ॥ २ ॥

मेहनत, लगन की, हौसले की जंग थी तकदीर से
पंछी इरादों के बंधे थे वक्त की जंजीर से
किस्मत हुई जो मेहरबाँ,
तोहफा मिला कुछ खास यूँ, मानो जमाना मिल गया
आशियाना मिल गया                                  ॥ ३ ॥

- अनामिक
(१०-१२/११/२०१६)

28 अक्तूबर 2016

अचानक ही नही होता

गज़ल का जनम कागज़ पर अचानक ही नही होता 
भला इन्सान यूँ शायर अचानक ही नही होता 

गिरे जब एक चिंगारी, कई पत्तें सुलगते हैं 
धुआँ खामोश जंगल भर अचानक ही नही होता 

न जाने मुश्किलें कितनी नदी है पार कर आती 
खुशी से चूर तब सागर अचानक ही नही होता 

सितारें जल रहे हैं चाँद की ख्वाइश में सदियों से 
उजागर रात में अंबर अचानक ही नही होता 

मोहब्बत है नशा ज़ालिम, ज़रा धीमे ही चढती है 
असर इसका भले दिल पर अचानक ही नही होता 

- अनामिक 
(२३/०९/२०१६ - २८/१०/२०१६)

22 अक्तूबर 2016

ख्वाब ख्वाब

अभी आँख लगने वाली थी,
की तेरे ख्वाबों के पंछी
आ भी गए सताने को
      तुझे भी कहा नींद है वहा
      इसी लिए भेजा है इनको
      दिल का हाल जताने को

ये भी कोई समय है भला ?
नींद सुकूँ की छोड-छाडकर
ख्वाब ख्वाब हम खेल रहे हैं
      तू इक सपना भेज नजर से
      इधर पकड लू मैं पलखों में
      ख्वाब हर तरफ फैल रहे हैं

ख्वाब रसीला.. ख्वाब शबनमी..
नटखट.. चंचल.. ख्वाब रेशमी..
ख्वाब नासमझ.. ख्वाब बावरा..
      ख्वाब गुदगुदाता.. शरारती..
      ख्वाब मुस्कुराता.. जज़बाती..
      ख्वाब महकता.. ख्वाब सुनहरा..

इतने सारे ख्वाब निराले
भला कहा से लाती है तू ?
इन्हे भेजना अब बस भी कर
      कल के लिए बचाकर रख कुछ
      बाढ आ गयी है ख्वाबों की
      ख्वाब ख्वाब ही हैं अब घर भर

- अनामिक
(२२/१०/२०१६)

19 अक्तूबर 2016

मैं गौर भी करता नही

यूँ ही किसी के गाँव की मैं सैर भी करता नही
पर ठान लू, मंजिल वही, तो देर भी करता नही 

मैं छेडता हूँ बात खुद तुझसे, समझ खुशकिस्मती
वरना किसी भी गैर पे मैं गौर भी करता नही 

हसके नजरअंदाज तेरी सब करू गुस्ताखियाँ
वरना किसी की गलतियों की खैर भी करता नही 

फुरसत मिले तो पढ कभी तुझ पे रची नज्में सभी
यूँ ही किसी पे पेश मैं इक शेर भी करता नही 

कुछ बात है दिल में, तभी पैगाम दोस्ती का लिखा
वरना किसी अंजान से मैं बैर भी करता नही 

- अनामिक
(१९/१०/२०१६) 

18 अक्तूबर 2016

कत्ल

वो भी क्या दिन था.. बडा अजब.. यादगार था 
हुआ छुरी-बंदूक बिना ही दिल पे वार था 

समझ न आया, घायल किस हथियार ने किया 
शायद इक सूरत, हसी, अदा का शिकार था 

बचाव में मैं ढाल उठाने से पहले ही 
तीर नजर का इन आँखों के आरपार था 

मुझे इल्म था, कत्ल मेरा होनेवाला है 
मगर पसंद के हाथों मरने का खुमार था 

उसे देख जी भर सुकून से मर भी जाता 
धडकन अटकी थी, पर तब कातिल फरार था 

हक्काबक्का रह गयी भरी महफिल सुनके 
मरके भी वही नाम लब पे बारबार था 

सोचा, आखिर अब तो बंद कर ही लू आँखें 
पर उसका ही सपना पलखों पे सवार था 

- अनामिक 
(१५-१७/१०/२०१६) 

13 अक्तूबर 2016

मखमली भास

अघटित आज घडले, दिवस खास होता
जिथे थांबला दोन क्षण श्वास होता 
मला पाहिले आज वळुनी तिनेही 
अहा, मखमली तो किती भास होता ॥ धृ ॥ 

कटाक्षात होता गुलाबी इशारा 
कसा रोमरोमात उठला शहारा 
मनी नाचला मोर, फुलला पिसारा 
नजर ती जणू रेशमी फास होता 
अहा, मखमली तो किती भास होता ॥ १ ॥ 

दिसे तेच स्वप्नी, वसे या मनी जे 
खरे मानले, भासले त्या क्षणी जे 
निळेशार मृगजळ सुन्या अंगणी जे 
अता तेच मिळवायचा ध्यास होता 
अहा, मखमली तो किती भास होता ॥ २ ॥ 

निथळलो मधुर गैरसमजात थोडा 
दिला कल्पनांचा पिटाळून घोडा 
तसा सुज्ञ, झालो जरा आज वेडा 
उद्या वास्तवाचाच सहवास होता 
अहा, मखमली तो किती भास होता ॥ ३ ॥ 

- अनामिक 
(१३/०९/२०१६ - १३/१०/२०१६) 

12 अक्तूबर 2016

हश्र क्या होगा

यूँ अपनी सादगी से ही वो दिल पे घाव करते हैं
उतर आए अगर सिंगार पे, तो हश्र क्या होगा ?

करे जब बात वो, खुशबू हवाओं में बिखरती है
तो सोचो, साँस में उनकी महकता इत्र क्या होगा ?

बँधी जुल्फों की लहरों से ही दिल में बाढ आती है
अगर सैलाब उनका खुल गया, तो कहर क्या होगा ?

दुआ में माँगता हूँ सिर्फ उनका चंद पलों का साथ
मिले जो उम्र की सोहबत, खुदा का शुक्र क्या होगा ?

गजब वो दिख रहे हैं आज, दिल की बात कहने दो
रुका हूँ मुद्दतों से, और मुझसे सब्र क्या होगा ?

- अनामिक
(०७,०८/१०/२०१६)

01 अक्तूबर 2016

छोटी छोटी बातें

भले दिखे ना तू अप्सरा जितनी खूबसूरत
चमक-धमक, सिंगार की नही तुझे जरूरत
बडी खासियत, बहोत अनोखे गुण कोई ना होते भी
दिल को छू जाती हैं तेरी छोटी छोटी बातें भी 

किसी राज सी गहरी कंचों जैसी आँखें
पलखों पे वो भीनी सी काजल की रेखा
नाजुक उंगली में इक सबसे अलग अंगूठी
माथे पे वो हलका सा कुमकुम का टीका
क्लिप से कैद कर रखा वो जुल्फों का सैलाब
जूही की कलियों जैसे वो नन्हे से लब 

रहन-सहन में बसी सादगी 
लिबास से झलकती नजाकत
खोए रहने को खुद का जग
हर काम में लगन और शिद्दत
शांत शख्सियत है वैसे, पर
दोस्तों संग बहोत चहचहाहट 

और भला क्या क्या बातें दिल में धीमे से घर करती है
जैसे धरती में बारिश की इक-इक बूँद उतरती है
किसी बीज से अंकुर उगने काफी हैं चंद बरसाते भी
वैसे दिल छूती हैं तेरी छोटी छोटी बातें भी 

- अनामिक
(१६/०९/२०१६ - ०१/१०/२०१६) 

29 सितंबर 2016

नदी जिंदगी की

नदी जिंदगी की बही जा रही है
न जाने, गलत या सही जा रही है

भवर, आँधियाँ, बाढ, सूखा, बवंडर
सितम मौसमों के सही जा रही है

उछलकर, गरजकर, कभी शांत बहकर
बिना लब्ज सब कुछ कही जा रही है

पसंद की सभी मंजिलों को भुलाकर
न चाहा जहा, ये वही जा रही है

गलत ही सही, बस यही है तसल्ली
रुके बिन कही ना कही जा रही है

- अनामिक
(१४-२९/०९/२०१६)

23 सितंबर 2016

अंतर

विरून जाऊ दे अता अंतर तुझ्या-माझ्यातले
मिळून करुया दूर चल अडसर तुझ्या-माझ्यातले

येते मनी भरती तुझ्या हसण्यामुळे, रुसण्यामुळे
दबवू उसळणारे कसे सागर तुझ्या-माझ्यातले

घुसमट किती ही वाढली लटक्या अबोल्याने तुझ्या
चल शिंपडू गप्पांतुनी अत्तर तुझ्या-माझ्यातले

झटकून टाकू जळमटे किंतू-परंतूंची जुन्या
मिटवू अता संदिग्धता, जर-तर तुझ्या-माझ्यातले

त्या रेशमी प्रश्नास दडवावे किती हृदयामधे
ओठात येऊ दे खरे उत्तर तुझ्या-माझ्यातले

- अनामिक
(१६-२२/०९/२०१६)

19 सितंबर 2016

आखिरकार

इंतजार में थी बहार के, डाली ब्याकुल आज कट गयी
कब से इक दरबार में पडी अर्जी आखिरकार फट गयी ॥ धृ ॥

अर्सों से जो अडी हुई थी, धूल चाटती पडी हुई थी
शायद कूडेदान में कही
जिनके थे दस्तखत जरूरी, जिनकी थी मिलनी मंजूरी
उनको इसकी भनक तक नही

दीमक को ही लगी सुहानी, उस अर्जी में लिखी कहानी
सौ टुकडों के बीच बट गयी
अर्जी आखिरकार..                                      ॥ १ ॥

अश्कों की स्याही से उमडे, वो बिखरे शब्दों के टुकडें
कैसे भला जुटा पाऊ ?
उनसे लिपटी सब यादों का, अरमानों का, फर्यादों का
कैसे बोझ उठा पाऊ ?

शायद अंत यही था मुमकिन, बुरा हुआ या अच्छा, लेकिन
इक झूठी उम्मीद छट गयी
अर्जी आखिरकार..                                      ॥ २ ॥

- अनामिक
(१७-१९/०९/२०१६)

15 सितंबर 2016

एक मौका चाहिए

खामोश है दीवार, लब्जों का झरोका चाहिए
खुशबू बिखरने को हवा का एक झोंका चाहिए

काटों में दिखेंगे गुल, नजरिया बस अनोखा चाहिए
दो जिंदगीया जोडने बस एक रेखा चाहिए

हर रात की होगी सुबह, बस बात से होगी सुलह
गुलशन खिलेगा, बीज को बस एक मौका चाहिए

- अनामिक
(०९/०८/२०१६ - ११/०९/२०१६)

07 सितंबर 2016

कभी न सोचा था

फिजूल थे जो लम्हें, उनकी अब खल रही कमी है क्यों ?
जाल लगे थे जो धागें, अब लग रहे रेशमी हैं क्यों ?

कभी न सोचा था, जो किस्सें कभी याद भी आएंगे
आज उन्ही बातों की दिल में इतनी भीड जमी है क्यों ?

अपनी धुन में मस्त मगन सी बेफिकर चल रही थी जो
आज किसी अंजान मोड पे यूँ जिंदगी थमी है क्यों ?

कुछ न मायने रखते थे जो, गैरों में जिनकी गिनती थी
आज बेसबब ही पलखों पे उनके लिए नमी है क्यों ?

- अनामिक
(२६/०८/२०१६ - ०२/०९/२०१६)

01 सितंबर 2016

दिल-दिमाग की जंग

दिल-दिमाग की जंग में आखिर होगी किसकी जीत ?
इसी कश्मकश में रहता हूँ, जबसे हुई है प्रीत                 ॥ धृ ॥

दिल नादानी की फिराक में, दिमाग वैसे शरीफ है
दिल गुम है सपनें बुनने में, दिमाग सच से वाकिफ है
दिमाग देने लगे नसीहत, पर दिल गाए गीत                 ॥ १ ॥

दिल बोले, "उसके आगे से गुजर, शुरू कर आँखमिचोली"
दिमाग बोले, "अनदेखा कर, कदम मोड ले, बदल ले गली"
दिल बोले, "उसे देखकर मुस्कुरा जरा, पल जाए बीत"        ॥ २ ॥

दिल बोले, "बातें कर उससे", दिमाग बोले, "चुप्पी धर"
दिल बोले, "कुछ भेज संदेसा", दिमाग बोले, "जरा सबर कर"
दिल पूछे, "इतना सोचा तो कैसे मिलेगा मीत ?"            ॥ ३ ॥

दिल जलता रहता है भीतर, दिमाग कसक बुझाता है
दिल फुसलाता, उकसाता है, दिमाग फिर समझाता है,
"जो करता है पहल, उसीकी मात.. यही है रीत"             ॥ ४ ॥

- अनामिक
(२५/०८/२०१६ - ०१/०९/२०१६)

30 अगस्त 2016

घडणार आहे शेवटी

अडवा किती, जे व्हायचे, घडणार आहे शेवटी
तोडून पिंजरा पाखरू उडणार आहे शेवटी

चुकतात रस्ता सर्व जण.. थांबेल जो, हरवेल तो
हुडकेल त्याला मार्ग सापडणार आहे शेवटी

संयम-विवेकाच्या किती बेड्यांमधे जखडाल मन ?
मोहात ते कुठल्यातरी पडणार आहे शेवटी

फुलपाखराचा गंध-रंगांचा सुटावा छंद का ?
त्याचा कळीवर जीव तर जडणार आहे शेवटी

ठरवून जुळती बंध का ? झटकून तुटती पाश का ?
टाळाल ज्याला, तोच आवडणार आहे शेवटी

लपवा कितीही भावना, ओठी न आणा शब्दही
रहस्य डोळ्यांतून उलगडणार आहे शेवटी

कान्हा फिरू दे गोपिकांसंगेच मुरली वाजवत
तो सूर राधेलाच पण भिडणार आहे शेवटी

- अनामिक
(२७-३०/०८/२०१६)

फिकीर नाही

कुणी असावे, कुणी नसावे, फिकीर नाही
दुर्लक्षावे, कुणी पुसावे, फिकीर नाही

ना मोहाच्या बेड्या, ना भवपाश कुणाचे
कुणी हसावे, कुणी रुसावे, फिकीर नाही

दार मनाचे सताड उघडे, खुलेच अंगण
कुणी निघावे, कुणी बसावे, फिकीर नाही

कुणी पाठ फिरवावी, द्यावा कुणी परिचय
कुणी लपावे, कुणी दिसावे, फिकीर नाही

निबर जाहलो नात्यांचे रिचवून हलाहल
गोंजारावे, कुणी डसावे, फिकीर नाही

- अनामिक
(०८-३०/०८/२०१६)

09 अगस्त 2016

विकार

चिंब धुंद वर्षेचा झालो शिकार आहे
जिवास जडला नवा हवासा विकार आहे

नकळत झाला काळजावरी घाव मखमली
कुणी खुपसली मधाळलेली कट्यार आहे

सुप्त अंतरी सप्त-सूर झंकारुन गेले
कुणी छेडली आर्त मनाची सतार आहे

कुणी शिंपली उमेद हिरमुसल्या स्वप्नांवर
पुन्हा नव्याने जगावयाचा विचार आहे

किती भासला क्षुल्लक, पण रुतल्यावर कळले
नजरेचा तो तीर किती धारदार आहे

चलाख आहे गनीम, की मग मीच वेंधळा
धरण्यापूर्वीच ढाल वार आरपार आहे

इतका मोहक, लोभस आहे समोर शत्रू
हसत हसत मी हरायलाही तयार आहे

- अनामिक
(०७-०९/०८/२०१६)

29 जुलाई 2016

बरसात

नशीली है अदा बरसात की, रुत है बहकने की
जरूरत है मगर यारों जरा बचने, संभलने की
इशारा है मिला, जमकर गिरेंगी इश्क की बूँदें
बडी संभावना है अब अचानक दिल फिसलने की ॥ धृ ॥

जमेंगे बादलों के झुंड, चलाने बाण बिजुरी के
भिगा देंगे तुम्हें, जितना छिपो फिर आड छत्री के
बचेगी फिर न कुछ उम्मीद दिल का मर्ज टलने की
बडी संभावना है..                                 ॥ १ ॥

सजेगी बाग दुलहन सी, पहन साडी गुलाबों की
तुम्हें छूने उडेंगी तितलियाँ रंगीन ख्वाबों की
रखो दिल सख्त जितना भी, है गुंजाइश पिघलने की
बडी संभावना है..                                 ॥ २ ॥

- अनामिक
(१३/०६/२०१६ - २९/०७/२०१६)

22 जुलाई 2016

पाउस वेडा

पाउस वेडा.. खट्याळ थोडा..
उगाच दंगा करतो पाउस
मेघांनाही लावुन नादी
पिसाटल्यागत झरतो पाउस
पाउस वेडा..           ॥ धृ ॥

उनाड पाउस.. टवाळ पाउस..
पाउस चंचल.. लबाड पाउस..
एकदा का कोसळू लागला,
समजवण्याच्या पल्याड पाउस
कधी पसरलेली ओंजळही
भरण्याआधीच विरतो पाउस
पाउस वेडा..           ॥ १ ॥

तुफान पाउस.. भयाण पाउस..
आनंदाला उधाण पाउस..
पाउस धोधो.. पाउस रिमझिम..
पाउस बोचक.. पाउस रेशिम..
सोंगाड्या हा.. किती मुखवटे,
किती रुपे पांघरतो पाउस
पाउस वेडा..           ॥ २ ॥

या शहरातुन.. त्या रानातुन..
वेलीतुन.. झाडा-पानातुन..
याच्या-त्याच्या खोड्या काढत
लहानग्यागत फिरतो पाउस
दमल्यावर मग भूमातेच्या
कुशीत गुपचुप शिरतो पाउस
पाउस वेडा..           ॥ ३ ॥

जरी कितीही बरसुन गेला
मनात शिल्लक उरतो पाउस
कातरवेळी साधुन संधी
डोळ्यातुन पाझरतो पाउस
पाउस वेडा..           ॥ ४ ॥

- अनामिक
(१९-२१/०७/२०१६)

22 मार्च 2016

सांझ

चलो सखी हम दूर जहाँ से, इक दर्या के शांत किनारे
सूरज की लाली में लिपटे गगन-तले इक सांझ गुजारे

लहरों का हो शोर सुरीला, और पवन की चंचल हलचल
नर्म रेत की चादर ओढे इत्मिनान से बैठे कुछ पल

घुले साँस में साँस, पहन ले हाथों में हाथों के कंगन
इक-टुक देखे दूर क्षितिज पे, धरती और अंबर का मीलन

कंधे के सिरहाने मेरे चैन-सुकूँ से तुम सो जाओ
फिक्र करो ना इस पल की, बस उजले कल के ख्वाब सजाओ

भीनी सी मुस्कान तुम्हारी देख देख मैं दिल बहलाऊ
जुल्फ-हवा का खेल निहारू, हकले से माथा सहलाऊ

तुम्हे छेडती शरारती लट मैं उंगली से दूर हटाऊ
नींद टूटने दू न तुम्हारी, भला जागते उम्र बिताऊ

घने बादलों में सपनों के यूँ ही तैरते रहे सांझ-भर
आए-जाए सूरज-चंदा, दुनिया की कुछ भी न हो खबर

- अनामिक
(२३/०४/२०१५ - २२/०३/२०१६)

08 मार्च 2016

बेमौसम

जाने आज हुआ है अंबर इतना क्यों बोझल
घिर आए हैं गर्मी में भी बरखा के बादल
धीमे स्वर में खनक रही है बिजली की पायल
बूँदें हैं बेताब भिगाने धरती का आँचल

इनको भी महसूस हो गयी मेरे दिल की प्यास
इसी लिए ये बेमौसम आए हैं मिलने खास
पर जिसके इंतजार में उलझी है मेरी साँस
उसको कब होगा मेरे जज़बातों का एहसास ?

ये सब तो जाएंगे बनकर इक दिन के मेहमान
पलखों को तोहफें में देकर अश्कों का तूफान
इन्हें कहूंगा, जरा बरसना उसके भी आँगन
उसको मेरे हिस्से की भी दे आना मुस्कान

- अनामिक
(०४-०७/०३/२०१६)

29 फ़रवरी 2016

जिंदगी की बात

कर लिये गप्पें बहोत, ढलने लगी है रात भी
चल सखी कर ले जरासी जिंदगी की बात भी

चुटकुलें, किस्सें, संदेसें बहोत भेजे, पढ लिये
चल जरा पढ ले निगाहों में लिखे जज़बात भी

इत्र, गुलदस्तें, खिलौनें.. दे चुके तोहफें कई
पेश करके देख ले दिल की हसीं सौगात भी

चल चुके चालें कई इस इश्क की शतरंज में
जीतने अब दाँव खा ले मुस्कुराकर मात भी

हमराह बनने की पहल कब तक इशारों में करे ?
चल बढाए अब कदम, कर ले नयी शुरुआत भी

- अनामिक
(२४-२९/०२/२०१६)

17 फ़रवरी 2016

कशिश

जाने कैसी कशिश तुम्हारी आँखों की गहराई में है
नफरत भी बरसे इनसे, फिर भी इक प्यास जगाती है

अजब तुम्हारी खामोशी भी, जैसे गजल सुनाती है
रंजिश के स्वर में भी, लगता है, आवाज लगाती है

कदम तुम्हारे बडे सितमगर, मुझे देख मुड जाते हैं
धूल मगर उन कदमों की राहों में फूल खिलाती है

नजर चुरा लो, मुँह भी फेरो, मगर नजर के सामने रहो
सिर्फ तुम्हारी मौजूदगी भी दिल को सुकूँ दिलाती है

- अनामिक

(३०/१२/२०१४, १२-१७/०२/२०१६)

02 फ़रवरी 2016

ऐ चाँद

सुनो ऐ चाँद पूनम के, न इतना भी दिखो सुंदर
सखी की याद आती है, पडे जब भी नजर तुम पर ॥ धृ ॥

समय था वो, समा दीदार से उनके महकता था
शहद का जाम जब मुस्कान से उनकी छलकता था

तुम्हारी चाँदनी से भी हसीं थी सादगी उनकी
खिलाती थी दिलों में फूल बस मौजूदगी उनकी ॥ १ ॥

नजर के सामने तुम, वो, हजारों मील थे पर दूर
तुम्हारा भी न, उनका भी न छू सकता कभी था नूर

जतन कितने किए उन तक पहुँचने के, सभी बेकार
छुपा लेती थी खुदको रंजिशों के बादलों के पार ॥ २ ॥

अमावस की तरह इक दिन अचानक वो हुई गायब
मुकद्दर के सितारे वो चुराकर ले गयी संग सब

तुम्हारी शक्ल में ही देखता हूँ अब छवी उनकी
कभी तो ईद आए, वो दिखे, ये आस है बाकी

मिले गर वो कभी, ऐ चाँद, इक पैगाम पहुँचाना
"उनकी याद में इक बावरा जगता है रोजाना" ॥ ३ ॥

- अनामिक
(०२/०२/२०१५ - ०२/०२/२०१६)

28 जनवरी 2016

चाय की प्याली

सांझ अकेली, इंतजार की, साथ चाय की प्याली थी
अफसोस.. सामने वाली कुर्सी मगर आज भी खाली थी

गरम चाय की भाप लपेटे
तैर रहे थे बीते लम्हें
जाने उनकी राह ताकते
गुजरी कितनी रातें-सुबहें
दिल की शीशी में इत्तर सी उनकी याद संभाली थी
अफसोस.. सामने वाली कुर्सी मगर आज भी खाली थी

उनसे बस इक मुलाकात की
पगली सी उम्मीद लिए
बेगानों संग आया था
मीलों की दूरी पार किए
गुलशन में पर वो ना थी, ना ही वो आनेवाली थी
अफसोस.. सामने वाली कुर्सी मगर आज भी खाली थी

घंटो बैठा रहा वही पे,
भटक भटक के थक गयी नजर
ढूँढ रही थी आहट उनकी,
कभी इस गली, कभी उस डगर
गीली आँखों में ढलते सूरज की उतरी लाली थी
अफसोस.. सामने वाली कुर्सी मगर आज भी खाली थी

- अनामिक
(१७-२७/०१/२०१६)