31 दिसंबर 2017

कुछ रह गया, कुछ ढह गया

कुछ गुम गया, कुछ बच गया
कुछ गिर गया, कुछ रह गया 
इस वक्त के सैलाब में 
क्या कुछ न जाने ढह गया 

                      कुछ कागजों की कश्तियाँ 
                      कुछ काँच की नक्काशियाँ 
                      इक सीपियों का ताजमहल 
                      इक रेत का पुल बह गया 

लिखता रहा, गाता रहा मैं 
लब्ज ना पहुँचे कही 
खामोश रहकर भी मगर 
सन्नाटा क्या कुछ कह गया 

                      बदमाशियों से बाज ना आयी 
                      सितमगर जिंदगी 
                      मैं भी तो कम जिद्दी नही 
                      सब मुस्कुराकर सह गया 

- अनामिक 
(२९-३१/१२/२०१७) 

22 दिसंबर 2017

तोहफा

सोच रहा हूँ, क्या दू तुमको ? तोहफा क्या लाजवाब दू ? 
झिलमिल झुमकें, छनछन पायल, या नाजुक सा गुलाब दू ? 

देने को तो खरीदकर दू मैं तो पूरी दुकान भी 
तोहफें रखने कम पड जाए तुमको अपना मकान भी 

शायर हूँ पर.. सोचता हूँ, लब्जों में रंगी स्याही दू 
तुम पर लिखी तमाम नज्मों से बढकर तोहफा क्या ही दू ? 

स्वीकार करो या ठुकराओ.. तुम करना जो भी लगे सही 
ये गीत मगर गूँजेंगे ही.. ये रसीद के मोहताज नही 

- अनामिक 
(२३/१२/२०१६ - २२/१२/२०१७)

21 दिसंबर 2017

ख्वाब का पुल

हर रात निंदिया की नदी पर 
ख्वाब का पुल बांधकर 
भरकर सितारें जेब में 
मिलने निकलता हूँ तुम्हे 

तुम रात का काजल लगाकर 
चाँद बालों में सजाकर 
ताज फूलों का पहनकर 
राह में नजरें बिछाकर 

मेरी प्रतीक्षा में नदी के 
पार रहती हो खडी 
दो नैन बेचैनी भरे 
सौ बार तकते हैं घडी 

छुपते हुए पुल लांघकर मैं चाँदनी की छाँव से 
पीछे तुम्हारे आ खडा रहता हूँ हलके पाँव से 
होले से हाथों से तुम्हारे नैन ढक देता हूँ मैं 
और सब सितारें जेब से सर पर छिडक देता हूँ मैं 

वो स्पर्श मेरा जानकर 
वो धडकनें पहचानकर 
नाजुक लबों पर चैन की भीनी हसी खिलती हुई 
तरसी निगाहों में सितारों की चमक घुलती हुई 
होकर खुशी में चूर गालों पर हया चढती हुई 
बेताब साँसों में सुरीली रागिनी छिडती हुई 

उस इक झलक के, उस हसी के, 
उस हया के वासते 
मैं इक नदी, इक पुल भला क्या 
आँधियाँ क्या, जलजला क्या 
लाख पुल भी बांधकर 
हर जलजले को लांघकर 
मैं रोज ही मिलने तुम्हे 
आऊ किसी भी रासते 

बस रोज यूँ ही राह तकना 
उस नदी के पार तुम 
बेसब्र पलखों में सजाकर 
इश्क का गुलजार तुम 

- अनामिक 
(०९/०४/२०१७ - २१/१२/२०१७) 

20 दिसंबर 2017

हादसा

हाँ, हो चुका था हादसा इक, जाने-अनजाने सही
पर जो हुआ, वैसा ही करने का इरादा था नही 

कुछ वक्त की बदमाशियाँ, कुछ चाल थी हालात की 
कुछ खेल था संजोग का, कुछ थी खता जजबात की 

मैं बस समय की उस नदी में नाव सा बहता गया 
बहाव के सब पत्थरों के घाव फिर सहता गया 

ना जख्म का गम, बस खुदा से है गिला इस बात का 
अपनी सफाई का मुझे मौका न इक भी दे सका 

पर आज भी वो हादसा खुद की नजर में माफ है 
दिल साफ था उस रोज भी, और आज भी दिल साफ है 

- अनामिक 
(१३,२०/१२/२०१७) 

07 दिसंबर 2017

नजरें

अल्हड नजरें, चंचल नजरें.. जजबातों से बोझल नजरें 
चुपके से दीदार पिया का करने हर पल बेकल नजरें 

इन नजरों से मिल जाने बेचैन भटकने वाली नजरें 
भटक-भटक इन नजरों के ही पास अटकने वाली नजरें 

टकराए जब, शरमाकर खुद को ही झुकाने वाली नजरें 
नर्म अधखुली पलखों से फिर धीमे मुस्काने वाली नजरें 

जान-बूझकर टकराकर भी, सोच-समझकर भिडकर भी 
गलती से ही टकराने का आभास जताने वाली नजरें 
लाख छुपाकर भी सब कुछ ही साफ बताने वाली नजरें 

इन नैनों के रस्ते दिल के पार उतरने वाली नजरें 
कटार जैसी धार से अपनी घायल करने वाली नजरें 

कभी रूठकर, कभी सताने खामखा मुडने वाली नजरें 
ज्यादा दूरी सही न जाकर फिर से जुडने वाली नजरें 

दो नैनों से सौ तरहा के रूप दिखानेवाली नजरें 
लब्जों बिन मीठी बोली से प्रीत सिखाने वाली नजरें 

- अनामिक 
(२५/११/२०१७ - ०७/१२/२०१७)

04 दिसंबर 2017

मरम्मत

कब बिगडी, और कैसे बिगडी कुछ चीजें, ये अहम नही 
अहम यही है, उनकी कब किस तरह मरम्मत की जाए 

इसकी गलती, उसकी गलती.. किसकी गलती ? फिजूल है 
कबूल करके गलती सुधारने की हिम्मत की जाए 

कई गुत्थियाँ बस बातों से सुलझाई जा सकती है 
जुबाँ की कैंची पे काबू पाने की जहमत की जाए 

इक नन्हा सा अंकुर भी कल महावृक्ष बन सकता है 
मगर लगन से हर आँधी से उसकी हिफाजत की जाए 

अपनों के हुनर, गुणों की तो सभी सराहना करते हैं 
पर उनके सब दोष, खामियों से भी मोहब्बत की जाए 

- अनामिक 
(०१,०२,०४/१२/२०१७) 

गिलें

गलतफहमियों के अंबर में सूझ-बूझ के बादल आए 
एक कदम था अंतर, करने पार जहाँ हम चल आए 

वैसे तो कुछ वजह नही थी बेमतलब की अनबन की 
करने गए सुलह, तो सदी पुराने गिलें निकल आए 

आ न रहा था समझ, भला कैसे शिकस्त दे दुश्मन को 
थूक दिया गुस्सा, तो दिमाग में दोस्ती के हल आए 

निकले थे हम दुनिया को अपनी नसीहतों से रंगने 
दिखा आइना चलते चलते, खुद को ही फिर बदल आए 

- अनामिक 
(०२-०४/१२/२०१७)