खामोशियाँ.. खामोशियाँ.. खलती रहे खामोशियाँ
अंगार सी बुझती रहे, जलती रहे खामोशियाँ
क्यों बात होकर भी बहोत बढती रहे खामोशियाँ
क्यों साथ होकर दर्मियाँ चलती रहे खामोशियाँ
क्यों बेरुखी के रूप में बहती रहे खामोशियाँ
क्यों कुछ न कहकर भी बहोत कहती रहे खामोशियाँ
क्यों सांज की दहलीज पर मिलती रहे खामोशियाँ
क्यों रात की चादर तले छलती रहे खामोशियाँ
खामोशियाँ.. खामोशियाँ.. खलती रहे खामोशियाँ
चुभते धुएँ सी साँस में घुलती रहे खामोशियाँ
- अनामिक
(३०,३१/०७/२०१९)
31 जुलाई 2019
25 जुलाई 2019
एक पहेली
पहेलियों ही पहेलियों से भरी पडी है दुनिया सारी
पर जितनी भी पहेलियाँ हो, चाहे तरह तरह की, न्यारी
सौ पहेलियाँ सुलझाने में मुझे न कुछ दिलचस्पी है
सुलझा लू वो एक पहेली, बस इतना ही काफी है
एक पहेली..
अंतरिक्ष के तारों की नक्काशी जैसी
जितनी दिलकश, उतनी गहरी
जिसका कोई छोर नही
भीतर कोलाहल या संगीत
बाहर बिलकुल शोर नही
एक पहेली..
मोरपंख पे रची हुई रंगोली जैसी
लुभावनी, पर जटिल बडी ही
नाजुक, पर कमजोर नही
जितनी मोहक, उतनी मुश्किल
एक पहेली.. जो सुलझाने
उम्र खर्च दू, तो भी कम है
मिल जाए हल, ना मिल पाए
उलझा रहू उम्रभर यूँ ही
ना भी सुलझी, ना गम है
- अनामिक
(२९/०५/२०१९ - २५/०७/२०१९)
पर जितनी भी पहेलियाँ हो, चाहे तरह तरह की, न्यारी
सौ पहेलियाँ सुलझाने में मुझे न कुछ दिलचस्पी है
सुलझा लू वो एक पहेली, बस इतना ही काफी है
एक पहेली..
अंतरिक्ष के तारों की नक्काशी जैसी
जितनी दिलकश, उतनी गहरी
जिसका कोई छोर नही
भीतर कोलाहल या संगीत
बाहर बिलकुल शोर नही
एक पहेली..
मोरपंख पे रची हुई रंगोली जैसी
लुभावनी, पर जटिल बडी ही
नाजुक, पर कमजोर नही
जितनी मोहक, उतनी मुश्किल
एक पहेली.. जो सुलझाने
उम्र खर्च दू, तो भी कम है
मिल जाए हल, ना मिल पाए
उलझा रहू उम्रभर यूँ ही
ना भी सुलझी, ना गम है
- अनामिक
(२९/०५/२०१९ - २५/०७/२०१९)
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