31 जुलाई 2019

खामोशियाँ

खामोशियाँ.. खामोशियाँ.. खलती रहे खामोशियाँ
अंगार सी बुझती रहे, जलती रहे खामोशियाँ

क्यों बात होकर भी बहोत बढती रहे खामोशियाँ
क्यों साथ होकर दर्मियाँ चलती रहे खामोशियाँ

क्यों बेरुखी के रूप में बहती रहे खामोशियाँ
क्यों कुछ न कहकर भी बहोत कहती रहे खामोशियाँ

क्यों सांज की दहलीज पर मिलती रहे खामोशियाँ
क्यों रात की चादर तले छलती रहे खामोशियाँ

खामोशियाँ.. खामोशियाँ.. खलती रहे खामोशियाँ
चुभते धुएँ सी साँस में घुलती रहे खामोशियाँ

- अनामिक
(३०,३१/०७/२०१९)

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