31 अगस्त 2017

अखेरचे हे गीत सखे

हे गीत कदाचित अखेरचे
यानंतर तुझे न शब्द सखे 
जे द्वार तुझ्यास्तव सताड उघडे 
करेन म्हणतो बंद सखे 

                       उतरेल जरी पानावर शाई 
                       तुझे न येइल नाव सखे 
                       चालेल अक्षरांचा प्रवास, पण 
                       तुझे न येइल गाव सखे 

उठतील कल्पनांच्या लाटा 
पण नसेल तुझा तरंग सखे 
फिरतील कुंचले स्वप्नांचे 
नसतील तुझे पण रंग सखे 

                       डुंबेन विचारांच्या डोही 
                       पण तुझे नसेल प्रतिबिंब सखे 
                       झरतील सरीही कवितांच्या 
                       नसतील तुझे पण थेंब सखे 

मोगरा सुरांचा दरवळेल 
पण नसेल तुझा सुगंध सखे 
घुमतील बासरीचे स्वरही 
पण नसेल तुझा निनाद सखे 

                       ते स्वप्न भरजरी होते, पण 
                       वास्तवास नव्हता वाव सखे 
                       थांबवतो अता खुंटलेला हा 
                       बुद्धिबळाचा डाव सखे 

- अनामिक 
(२५-३१/०८/२०१७) 

27 अगस्त 2017

सखे

मी करेन म्हणतो कैद तुला, शब्दांचे घेउन रंग सखे 
पण नजर तुला भिडताच तुझ्या रंगातच होतो गुंग सखे 
तू समोर असता, सांग सखे, मी भान स्वतःचे कसे जपू ? 
आरस्पानी अस्तित्व तुझे मी कवितेमधुनी कसे टिपू ?   ॥ धृ ॥ 

ही वीज तुझ्या डोळ्यांमधली 
ही जुई तुझ्या ओठांवरली 
ही सांजेची लाली गाली 
हा सूर्याचा ठिपका भाळी 
हा मोरपिसासम स्पर्श फुलवतो मनी सहस्त्र तरंग सखे 
मी भान स्वतःचे कसे जपू, तू समोर असता ? सांग सखे ॥ १ ॥ 

हा वादळवारा केसांचा 
हा धुंद मोगरा श्वासांचा 
हा देह चिमुकला चिमणीचा 
पण डौल जणू फुलराणीचा 
मी काय लिहू, अन्‌ काय नको ? उपमांची मोठी रांग सखे 
मी भान स्वतःचे कसे जपू, तू समोर असता ? सांग सखे ॥ २ ॥ 

हे गूढ इशारे नजरांचे 
हे गहन भाव चेहऱ्यावरले 
हे गुपित मंद स्मितहास्याचे 
हे लक्ष शब्द मौनामधले 
मी खोल उतरतो तुझ्या अंतरी, तरी न लागे थांग सखे 
मी भान स्वतःचे कसे जपू, तू समोर असता ? सांग सखे ॥ ३ ॥ 

- अनामिक 
(१५-२७/०८/२०१७) 

23 अगस्त 2017

दिल फिसलने की घडी

मदहोश बादल, धुत समा, बेताब बूँदों की झडी 
ऐसे समय तुम रूबरू बारिश लपेटे हो खडी 
तुम ओंस में भीगी हुई जैसे कमल की पंखुडी 
रोकू, संभालू, जो करू.. है दिल फिसलने की घडी 

भीगी लटों से हैं टपकती मोतियों की ये लडी 
ये ठंड से कांपता बदन, पर है नजर में फुलझडी 
पलखें झपकती ही नही, तुम पर निगाहें जो जडी 
रोकू, संभालू, जो करू.. है दिल फिसलने की घडी 

गुस्ताखियाँ गर हो गयी, तो दोष ये किसका कहे ? 
मेरा? तुम्हारा? इश्क? या बदमाश बारिश का कहे ? 
ऐसे न उतरेगी, मुझे जो रूप की मदिरा चढी 
रोकू, संभालू, जो करू.. है दिल फिसलने की घडी 

- अनामिक 
(२७/०७/२०१७, २१-२३/०८/२०१८)

13 अगस्त 2017

कभी ना हो खतम

ये दिन खतम ना हो कभी, ये रात भी ना हो खतम
ये बेसमय चलती हमारी बात भी ना हो खतम 

ये तितलियों के काफिलें, ये जुगनुओं की महफिलें
ये चाँदनी की मदभरी बरसात भी ना हो खतम 

ये रंग हया का शरबती, लब पे हसी की चाशनी
दिल से छलकते शबनमी जजबात भी ना हो खतम 

तरकीब कुछ हम खोज ले, सुइयाँ घडी की रोक ले
पर ख्वाब सी ये जादुई मुलाकात भी ना हो खतम 

ये दो कदम का रासता, ये सौ जनम का वायदा
ये उम्रभर के साथ की शुरुआत भी ना हो खतम 

- अनामिक 
(०६-१३/०८/२०१७)