15 अक्तूबर 2022

अलविदा

बस यही तक था सफर, था बस यही तक रासता
बस यही तक साथ था अपना, यही तक वासता

रब ने लिखी थी खुद कभी..
तकदीर ने फिर भी मिटा दी खामखा 
जनमों-जनम की खूबसूरत दासताँ

दो दूर के पहियें कभी लाए थे संग संजोग ने
चलेगी सवारी उम्रभर ये, राह को भी था पता

कुछ भी न थे शिकवें-गिलें, फिर भी बिछ गए फासलें
लगती न अपनों की नजर, तो खूब खिलता राबता

जो इस जनम ना फूल बन पायी मोहब्बत की कली
अगले जनम मिलकर सजाएंगे दिलों का गुलसिताँ

आवाज पहुचेगी न अब, जितनी भी दू दिल से सदा
तो अब निकलता हूँ सखी, लेकर अधूरा अलविदा

- अनामिक
(०६-१५/१०/२०२२) 

09 अक्तूबर 2022

ख्वाबों के बुलबुलें

साबुन के बुलबुलों के जैसे ख्वाब फुलाकर उडा रहा हूँ
इस पल है महफूज, न जाने कल का मंजर क्या होगा !..
बदमाश वक्त की हवा किस दिशा, किस रफ्तार बहेगी कल ?!..
इन अल्हड मेरे ख्वाबों का अंजान मुकद्दर क्या होगा ?!..

वो बस दिखने में नाजुक हैं, पर लड लेंगे पर्बत से भी
वो शोख हवा पे सवार होकर उड भी लेंगे अंबर तक
वो चकमा देंगे तूफानों को, पार करेंगे सागर तक
पर किस्मत जब बनकर आए खूँखार बवंडर, क्या होगा ?!..

इन अल्हड मेरे ख्वाबों का अंजान मुकद्दर क्या होगा ?!..

- अनामिक
(१९/०३/२०२२ - ०९/१०/२०२२)