28 फ़रवरी 2014

गहराई

कभी उछलकर, कभी मचलकर मन छू लेती हैं लहरें
पर सागर जाने क्या भीतर राज़ छुपाए है गहरें

कंकड़ फैंके नाप रहा हूँ मैं पानी की गहराई
मोती निकले, या पत्थर, पर हाथ लगे बातें कोई
रोक रहे हैं आहट को भी काले बादल के पहरें

खारे पानी से सपनों की कैसे प्यास बुझाऊ मैं
घर न चले पंछी सवाल के, क्या उनको समझाऊ मैं
इस बेचैनी पर हसते हैं लहरों के लाखों चेहरें

- अनामिक
(०३/०९/२०१२ ११/०६/२०१३ २७/०२/२०१४)

25 फ़रवरी 2014

रात

नशे में है समंदर, चढ रही है रात धीरे से
महरबाँ चाँद रेशम की करे बरसात धीरे से

गगन कब से पुकारे, कान मूँदे है पडी धरती
लगे है टूटने तारा बने जज़बात धीरे से

उछलकर भी, मचलकर भी, कभी समझा सकी ना जो
किनारे से लहर अब कह रही वो बात धीरे से

सितारों में हुई कुछ गुफ्तगू किस्मत बदलने की
अधूरी दासताँ करने लगी शुरुवात धीरे से

- अनामिक
(२३-२५/०२/२०१४)

21 फ़रवरी 2014

अर्जी

कब से नजर में कैद थे, अब पार कर सब मुश्किले
पंछी सलोने ख्वाब के भरने उडानें हैं चले

कश्मकश की बंदिशों को तोड कर जज़बात अब
दहलीज दिल की लांघ कर पहुँची जुबाँ तक बात अब

सब जान कर भी ना बनो अंजान, सुन भी लो जरा
दिल की मुरादें पाक हैं, पहचान तुम भी लो जरा

इक बार सुन लो, फिर करो तय जो तेरी मर्जी
पर बिन पढे ही ना करो खारिज मेरी अर्जी

अर्जियाँ ही अर्जियाँ हैं अब तेरे दरबार में
कुछ सुना दे फैसला, इनकार या इजहार में

- अनामिक
(१४,२०,२१/०२/२०१४)

18 फ़रवरी 2014

कश्मकश

अजब सी कश्मकश है हर घडी, सुलझे न इक मुश्किल
खयालों का उठा तूफान है, बस में न अब है दिल
बसा है जो निगाहों में, करू कैसे उसे हासिल ?

रुकू उसके इशारे के लिए, या खुद करू शुरुवात ?
जुबाँ से छेड़ दू अल्फाज, या कर लू नजर से बात ?
दिखाऊ सिर्फ दोस्ती, या जताऊ मैं दबे जज़बात ?

रखू दर्म्यान कुछ दूरी, मिलू या रोज सुबहो-शाम ?
करू मैं जल्दबाजी, या जरासा सब्र से लू काम ?
समय की रेत फिसले हाथ से, निकले न कुछ अंजाम

करू मैं क्या जतन, जो कर सकू उसके जिया में घर ?
बिखेरू शायरी के रंग, छेडू बांसुरी के स्वर ?
लगे पर डर, कही उसका अलग ही तो नही ईश्वर ?

जताऊ तो भला कैसे, बताऊ तो भला कैसे ?
करू मैं दो दिलों के बीच का तय फासला कैसे ?
सुनहरी जिंदगी का हो शुरू तो सिलसिला कैसे ?

सुलझती है न ये उलझन..

- अनामिक
(३१/०१/२०१४ - १८/०२/२०१४)