15 अक्तूबर 2022

अलविदा

बस यही तक था सफर, था बस यही तक रासता
बस यही तक साथ था अपना, यही तक वासता

रब ने लिखी थी खुद कभी..
तकदीर ने फिर भी मिटा दी खामखा 
जनमों-जनम की खूबसूरत दासताँ

दो दूर के पहियें कभी लाए थे संग संजोग ने
चलेगी सवारी उम्रभर ये, राह को भी था पता

कुछ भी न थे शिकवें-गिलें, फिर भी बिछ गए फासलें
लगती न अपनों की नजर, तो खूब खिलता राबता

जो इस जनम ना फूल बन पायी मोहब्बत की कली
अगले जनम मिलकर सजाएंगे दिलों का गुलसिताँ

आवाज पहुचेगी न अब, जितनी भी दू दिल से सदा
तो अब निकलता हूँ सखी, लेकर अधूरा अलविदा

- अनामिक
(०६-१५/१०/२०२२) 

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