27 मई 2019

पहेलियाँ

पहेलियाँ ही पहेलियाँ हैं
शख्सों की, शख्सियतों की
चेहरों के परदों के पीछे छुपी हुई​​ असलियतों की

चलती-फिरती पहेलियाँ हैं इन्सानों के लिबास में
उलझ न जाओ खुद ही इनको सुलझाने के प्रयास में

किसको जानो ? कितना जानो ?
जिसको भी, जितना भी जानो.. 

जितनी भी नापो गहराई, उससे भी गहरा पानी है
जितनी भी मानो सच्चाई, बिलकुल अलग कहानी है

एक पहेली बूझो तो, झटसे दूजी भी हाजिर है
जिसको जितना समझो भोला, वो उतना ही शातिर है

प्याज की घनी परतों जैसे
सारे परदें खुल जाए जब
मन में थी जो छवी बनी,
उससे कुछ ना मिल-जुल पाए जब

जितनी भी दो मन को तसल्ली
सुद-बुद से समझी और परखी जितनी भी झुठला दो बातें
सच तो सच ही आखिर है

यहा पहेली बनकर जीने में हर कोई माहिर है

- अनामिक
(२६,२७/०५/२०१९)

17 मई 2019

लिखेंगे और ज्यादा

रहे स्याही-कलम जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा
न हो सपनें खतम जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा

खिले खुशियाँ, या बरसे गम.. लिखेंगे और ज्यादा
रहे हम कल, रहे ना हम.. लिखेंगे और ज्यादा

किसी मुस्कान की सरगम.. किसीके नैन की शबनम
किसीकी जुल्फ का रेशम.. लिखेंगे और ज्यादा

कोई पढकर सराहे.. तो लिखेंगे और ज्यादा
या पढना भी न चाहे.. तो लिखेंगे और ज्यादा

जले दिल की शमा जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा
न छू ले आसमाँ जब तक.. लिखेंगे और ज्यादा

- अनामिक
(१६/०५/२०१९)

14 मई 2019

शर्त

मैं नींद अपनी हार दू.. सुख, चैन, राहत हार दू 
तेरी गुलाबी मुस्कुराहट पे मैं जन्नत हार दू 

दिल हार दू तुझपे सखी मैं.. होश, सुद-बुद हार दू 
तेरी छवी के सामने खुदका वजूद हार दू 

दौलत लगा दू दाव पे.. पूँजी, कमाई हार दू 
तुझसे छिडी छोटी-बडी हर जंग-लडाई हार दू 

दिन क्या ? महीनें क्या ? उमर भी गुजार दू तेरे लिए 
मैं मुस्कुराकर जिंदगी भी हार दू तेरे लिए 

क्या कुछ न न्योछावर करू मैं ?! फिर सखी तू ही बता.. 
तुझसे लगी इक "शर्त" भी क्या जीतने की चीज है ?! 

कुछ जीतना ही है सखी, दिल में जगह मैं जीत लू 
तेरी खुशी की, मुस्कुराहट की वजह मैं जीत लू 

जजबात तेरे जीत लू मैं.. साथ तेरा जीत लू 
बनने जनम का हमसफर मैं हाथ तेरा जीत लू 

छू लू तेरे अरमान.. ख्वाबों का जहाँ मैं जीत लू 
फिर पूछ लू वो इक सवाल.. जवाब "हाँ" मैं जीत लू 

क्या कुछ नही है हारने को, जीतने को ?! फिर बता.. 
इक "शर्त" मामूली भला क्या जीतने की चीज है ?! 

तू जीते, या मैं जीत लू.. ये दोनो इक ही बात है 
तेरी खुशी ही, जीत ही मेरी मुकम्मल जीत है 

- अनामिक 
​(१५/०२/२०१९ - ०४/०३/२०१९, १४/०५/२०१९) ​​

12 मई 2019

पाहिले तुज ज्या क्षणी

थक्क झालो, दंग झालो
स्तब्ध झालो, गुंग झालो
मग्न झालो, मुग्ध झालो
तृप्त झालो, लुब्ध झालो

तप्त ग्रीष्माच्या दुपारी
सर बरसली श्रावणी
अप्सरेसम रुप तुझे ते
पाहिले मी ज्या क्षणी || धृ ||

                        भरजरी लावण्य लेवुन
                        तू अशी येता समोरी
                        उमटले प्रतिबिंब गहिरे
                        भारलेल्या अंतरी

                        स्वर्गलोकातून अवतरली
                        परी जणु अंगणी
                        थक्क झालो, दंग झालो
                        पाहिले तुज ज्या क्षणी || १ ||

चांदण्या पडल्या फिक्या
लखलख तुझ्या तेजामुळे
चंद्रमा ठरलीस तू
सगळेच उरले ठोकळे 

पूर आला नक्षत्रांचा
काळोख्या तारांगणी
थक्क झालो, दंग झालो
पाहिले तुज ज्या क्षणी || २ ||

                        श्वास अडला चार घटका
                        थांबला हृदयात ठोका
                        राहिले उघडेच डोळे
                        जणु विजेचा सौम्य झटका 

                        मी कसे शुद्धीत यावे ?
                        काढे ना चिमटा कुणी
                        थक्क झालो, दंग झालो
                        पाहिले तुज ज्या क्षणी || ३ ||

- अनामिक
(११-२२/०३/२०१९, १२/०५/२०१९)

04 मई 2019

ऐ चाँद.. तू ही है पसंद

कल था महूरत खास कुछ
लंबी अमावस बाद फिर
जो छुप गया था बादलों में
कल मिला था चाँद फिर

गप्पें किए फिर खूब उसने
फिर मजाक-मजाक में
उसने ही छेडी बात खुद
की "कौन है तुमको पसंद ?"

मैं मन ही मन में हस दिया
फिर कश्मकश में पड गया

अब चाँद को कैसे कहू ?
"ऐ चाँद.. तू ही है पसंद
दिल के, नजर के दायरों में
शायरी के अक्षरों में
बासुरी के सब सुरों में
सिर्फ तू ही है बुलंद"

पर क्या करू ? मजबूर था
होकर जुबाँ पर नाम उसका मैं बता पाया नही
क्या ही पता ? सच जानकर,
होकर खफा अंबर में वो खिलना न बंद कर दे कही

मैं इसलिए बस मुस्कुराया
और बोला, "है कोई.."
खुद जान न पाए,
चाँद इतना नासमझ भी तो नही

- अनामिक
(०३,०४/०५/२०१९)