हार से मिलकर गले अब जीत की ख्वाइश है क्यों
फूल सब मुरझा गए, दिल चाहता बारिश है क्यों
गूँजते थे महफिलों में गीत जब, मैं चुप रहा
फूल सब मुरझा गए, दिल चाहता बारिश है क्यों
सामने थी मंजिले, मैं सहमकर धीमे चला
अब बिछे हैं फासले, भगदौड की कोशिश है क्यों
झिलमिलाती रात में भी चाँद को छू ना सका
अब अमावस है घनी, दिल ढूँढता गर्दिश है क्यों
गूँजते थे महफिलों में गीत जब, मैं चुप रहा
अब विरानों में लबों पे एक फर्माइश है क्यों
तेज जीवन का जुआ था, तब न खेली बाजियाँ
अब पडे फाँसे गलत, तकदीर से रंजिश है क्यों
- अनामिक
(१८-२०/०५/२००८)
(१८-२०/०५/२००८)