नादान हुआ करते थे जो.. बेफिक्र जिया करते थे जो
अफसानों के आसमान में खुलकर उडान भरते थे जो
पर जिंदगी के गुरू से कैसा पाठ न जाने सुन बैठे
वो अल्हड, चंचल सपनें मेरे समझदार क्यों बन बैठे ?!..
बेवक्त आँख के दरवाजे पे अब वो दस्तक देते नही
बेवजह रात की गलियारों में नींदों को छेडते नही
वो उडते उडते शायद गलती से वास्तव के नगर गए
और देख नजारा सच्चाई का सहम गए, फिर बदल गए
वो उस दिन से खामोश हुए यूँ, गीत न इक भी गा पाए
अरमानों के गुलशन में नया न इक भी बीज लगा पाए
कमजोर नही थे बिलकुल भी वो, आखिर तक वो डटे रहे
पर कौन बच सका है किस्मत से ? सपनें सारे बिखर गए
- अनामिक
(१८-२३/०९/२०२२)
22 सितंबर 2022
समझदार सपनें
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