04 अगस्त 2019

चलता रहे यूँ ही सफर

जो साथ तेरे है शुरू
दो-चार लम्हों का सफर
ना खत्म हो, ​​चलता रहे यूँ उम्रभर 
                जो बात तुझसे है छिडी 
                दो लब्ज, या इक दासताँ 
                वो गीत सी घुलती रहे शामो-सहर || मुखडा ||

तू बिन कहे भी मैं सुनू
खामोशियों की भी जुबाँ
तेरी उदासी, या खुशी
बेचैनियाँ, या ख्वाइशें 
                जिनसे खिले गुमसुम लबों पे 
                मुस्कुराहट की कली 
                ना इल्म भी जिनका तुझे 
                मैं सब करू वो कोशिशें

तेरे नयन के ख्वाबों में
मैं हौसलों के रंग भरू 
                मंजिल चुने तू, और बनू मैं रहगुजर 
                ना खत्म हो, चलता रहे यूँ ही सफर || अंतरा ||

- अनामिक
(०४/०८/२०१९) 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें