कुछ गिर गया, कुछ रह गया
इस वक्त के सैलाब में
क्या कुछ न जाने ढह गया
कुछ कागजों की कश्तियाँ
कुछ काँच की नक्काशियाँ
इक सीपियों का ताजमहल
इक रेत का पुल बह गया
लिखता रहा, गाता रहा मैं
लब्ज ना पहुँचे कही
खामोश रहकर भी मगर
सन्नाटा क्या कुछ कह गया
बदमाशियों से बाज ना आयी
सितमगर जिंदगी
मैं भी तो कम जिद्दी नही
सब मुस्कुराकर सह गया
- अनामिक
(२९-३१/१२/२०१७)
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