21 दिसंबर 2017

ख्वाब का पुल

हर रात निंदिया की नदी पर 
ख्वाब का पुल बांधकर 
भरकर सितारें जेब में 
मिलने निकलता हूँ तुम्हे 

तुम रात का काजल लगाकर 
चाँद बालों में सजाकर 
ताज फूलों का पहनकर 
राह में नजरें बिछाकर 

मेरी प्रतीक्षा में नदी के 
पार रहती हो खडी 
दो नैन बेचैनी भरे 
सौ बार तकते हैं घडी 

छुपते हुए पुल लांघकर मैं चाँदनी की छाँव से 
पीछे तुम्हारे आ खडा रहता हूँ हलके पाँव से 
होले से हाथों से तुम्हारे नैन ढक देता हूँ मैं 
और सब सितारें जेब से सर पर छिडक देता हूँ मैं 

वो स्पर्श मेरा जानकर 
वो धडकनें पहचानकर 
नाजुक लबों पर चैन की भीनी हसी खिलती हुई 
तरसी निगाहों में सितारों की चमक घुलती हुई 
होकर खुशी में चूर गालों पर हया चढती हुई 
बेताब साँसों में सुरीली रागिनी छिडती हुई 

उस इक झलक के, उस हसी के, 
उस हया के वासते 
मैं इक नदी, इक पुल भला क्या 
आँधियाँ क्या, जलजला क्या 
लाख पुल भी बांधकर 
हर जलजले को लांघकर 
मैं रोज ही मिलने तुम्हे 
आऊ किसी भी रासते 

बस रोज यूँ ही राह तकना 
उस नदी के पार तुम 
बेसब्र पलखों में सजाकर 
इश्क का गुलजार तुम 

- अनामिक 
(०९/०४/२०१७ - २१/१२/२०१७) 

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