आजाद होगी इक सहर
फिर से अंधेरी रात ओढेगी उजाले की चुनर
फिर से उडेंगे ख्वाइशों की तितलियों के काफिलें
फिर से चलेंगे हर दिशा में रोशनी के सिलसिलें
फिर से खुलेगा आसमाँ.. || मुखडा ||
फिर से फिजा में गूँजेगी अल्हड पवन की बासुरी
फिर से सजेंगी डालियों पर कोयलों की महफिलें
फिर से गुलों पर रंगों से मौसम लिखेगा शायरी
फिर से बगीचों में खुलेंगी इत्तरों की बोतलें
फिर से खुलेगा आसमाँ.. || अंतरा-१ ||
छनछन बजेंगी वादियों में बारिशों की पायलें
मासूम चिडियों की चहक से खिल उठेंगे घोंसलें
गुमसुम मुकद्दर पर चलेगी वक्त की जादूगरी
होंगी मुकम्मल राह भटकी जिंदगी को मंजिलें
फिर से खुलेगा आसमाँ.. || अंतरा-२ ||
- अनामिक
(२४/११/२०२० - २४/०७/२०२१)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें