चल पडे हैं बेसबब हम दो, जहाँ से बेखबर
बुलंद पेडों का सजा है शामियाना स्वागत करने
डालियों की खिडकियों से छू रही हैं नर्म किरनें
रासतेभर सुर्ख पत्तों का बिछा कालीन है
सावली परछाइयाँ भी दिख रही रंगीन हैं
तितलियों के भेस में कुछ ख्वाब नाजुक उड रहे हैं
सुर मधुर चंचल पवन की बांसुरी से छिड रहे हैं
हाथ थामा है तुम्हारा, यूँ लगे रेशम छुआ है
तेज पहिया वक्त का तुम संग लगे मद्धम हुआ है
खत्म भी हो, या न हो अब ये डगर, ना है फिकर
यूँ ही रहो तुम हमकदम, चलते रहेंगे उम्रभर
- अनामिक
(१०/०१/२०१७ - २०/०४/२०१७)
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