13 अप्रैल 2017

मोल

हर शहर की ही तरह इस शहर से भी खामखा
एक तोहफा ले लिया है फिर तुम्हारे नाम का

ये जानकर भी की तुम्हे इसकी कदर तो है नही
पर क्या करू ? आदत कहो, खुद की तसल्ली ही सही

संदूक में ही बंद रखू, तुम तक न पहुँचाऊ अभी
घर-वापसी की तो न नौबत आएगी उसपर कभी

छोड भी दो मेरे, तोहफे के मगर जजबात हैं
उनका समझना मोल ना बस की तुम्हारे बात है

- अनामिक
(११-१३/०४/२०१७)

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