मैं लाख जतन भी कर लू, पर.. तुमसे भी तो कुछ कोशिश हो
तुम एक कदम बस चल आओ, मैं तै सैंकडों मकाम करू
तुम एक घडी दो फुरसत की, दिन-रैन तुम्हारे नाम करू
तुम एक संदेसा भेजो बस, मैं बाढ चिठ्ठियों की लाऊ
तुम एक पुकार लगाओ बस, मैं पार जलजलें कर आऊ
तुम एक लब्ज ही कह दो बस, मैं नज्मों की बरसात करू
तुम एक दफा बस मुस्काओ, मैं खुद होकर शुरुआत करू
पर कम से कम वो एक कदम अब तुम्हे ही उठाना होगा
मैं खोलूंगा दर झटके में, पर तुम्हे खटखटाना होगा
मैं मीलों चल आया हूँ अब तक, थमना अभी जरूरी है
पग में जमीर की बेडी है, जिसकी न मुझे मंजूरी है
- अनामिक
(२८/०३/२०१७ - ०३/०४/२०१७)
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