ये वक्त है, या है नदी ?!
किस ओर बहती जा रही ?..
रफ्तार इसकी तेज़ इतनी, है समझ के भी परे
जाने कहाँ ले जा रही ?..
क्या कुछ बहा ले जा रही
कैसे उभर पाए भला, इक बार जो इसमें गिरे ?
ये वक्त है, या है नदी ?! || धृ ||
चंचल पलों की रेत
मुठ्ठी से फिसलती जा रही
पलखें झपकते ही यहाँ
सदियाँ बदलती जा रही
ये वक्त क्यों माने न मद्धम जिंदगी के दायरें ?
ये वक्त है, या है नदी ?! || १ ||
तैरे भला तो किस दिशा ?
ढूँढे जज़ीरा कौनसा ?
इस पार, या उस पार का, थामे किनारा कौनसा ?
सीखे कहाँ मंझधार में से लौटने के पैंतरें ?
ये वक्त है, या है नदी ?! || २ ||
चलते रहे बरसों मुसाफिर जिंदगी की रहगुज़र
पर खींच ले भीतर उन्हें जब वक्त का गहरा भवर
सीधे सयाने शख्स भी बन जाते हैं तब बावरे
ये वक्त है, या है नदी ?! || ३ ||
- अनामिक
(२३/०३/२०२२ - २९/०४/२०२२)
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