13 जनवरी 2017

राही

चले तेज इस कदर जिंदगी, थमने की न इजाजत है 
बिता सकू इक मकाम ज्यादा समय, न इतनी फुरसत है 

नयी मंजिलें, नये नजारों की नजरों को दावत है 
चलू अकेला, बने काफिला.. जो भी आए, स्वागत है 

जिसको जुडना है, जुड जाए.. जिसको मुडना है, मुड जाए 
मैं तो अपनी राह चलूंगा, कदम जिस दिशा बढ जाए 

हाँ, रुक जाता हूँ उसकी खातिर, जिसे हमसफर बना सकू 
इक बार रुकू, दो बार.. मगर नामुमकिन है सौ बार रुकू 

- अनामिक 
(२९/१२/२०१६ - १३/०१/२०१७)

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