09 मई 2018

याद बाकी है कही

जो ढह गया पुल, बांधने की ख्वाइशें बिलकुल नही 
बस इक पुराने जलजले की याद बाकी है कही 

सब जख्म कब के भर चुके.. सब दर्द फीके पड गए 
बस उनके गहरे दाग अर्सों बाद बाकी हैं कही 

कब का हजम भी कर लिया उस दौर का जालिम जहर 
कुछ नीम से कडवे पलों का स्वाद बाकी है कही 

मजबूत ख्वाबों का महल.. गिर भी गया, अब गम नही 
कमजोर, मलबे में दबी बुनियाद बाकी है कही 

ना है खुदा से कुछ गिला.. जो ना दिया, अच्छा किया 
बस अनसुनी, खारिज हुई फर्याद बाकी है कही 

- अनामिक 
(२६/१२/२०१७ - ०९/०५/२०१८) 

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