भगदौड काफी हो गयी.. दिल कह रहा अब, बस हुआ
जो धुंद सुहानी थी फिजा में, बन गयी है अब धुआ
चलकर हजारों मील भी आगे दोराहे हैं नये
दौलत समय की खर्च दी बस एक सपनें के लिए
करती रही लहरें समय की वार, दिल ने सब सहा
बरसों सबर का बांध था मजबूत, पर अब ढह रहा
दिखता रहा आगे जजीरा, नाव बहती ही रही
इतने समंदर तर लिए.. की अब छोर की ख्वाइश नही
मैं इस जनम तक क्या, कयामत तक भी कर लू इंतजार
पर बेकदर इन महफिलों में ठहरने का दिल नही
अब सोचता हूँ, छोड दू तकदीर पे ही फैसलें
वरना न हासिल कर सकू, ऐसी कोई मंजिल नही
- अनामिक
(११-१५/०६/२०२२)
15 जून 2022
भगदौड काफी हो गयी
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें