इस चाह की इस राह पर हम तुम सनम गुमराह हैं
ये बादलों की बोतलों में बिजलियों के जाम हैं
पी ले इन्हे, ये दिल बहकने का रसीला माह है
ना है जमाने की फिकर, ना हैं समय की बंदिशें
कसकर मुझे लिपटी हुई नाजुक तुम्हारी बाह है
हम बेसबब चलते रहे, मंजिल मिले, ना भी मिले
खो भी गए इक-दूसरे में, क्या हमें परवाह है ?
थककर कभी रुक भी गए, भरना मुझे आगोश में
उस मखमली आगोश सी दूजी न कोई पनाह है
- अनामिक
(०६/०८/२०१७ - ०४/०९/२०१७)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें