11 सितंबर 2017

तालाब

हाँ, दोष है तालाब का, जो खुद ही मचला था कभी 
अब तक न स्थिर जो हो सका, आए गए मौसम सभी 

वो खुद-ब-खुद ही शांत हो जाता, न होता, क्या पता ? 
पर चंद कंकड फेकने की तो किसी की थी खता 

साबित न कुछ करना, न अब देनी दलीलें अनकही 
जिसने शरारत की, उसे एहसास है, काफी यही 

मालूम है तालाब को अपनी हदें, ना हो फिकर 
उडने न देगा छींट भी तट पर खडे नादान पर 

- अनामिक 
(०७-११/०९/२०१७) 

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