23 अगस्त 2017

दिल फिसलने की घडी

मदहोश बादल, धुत समा, बेताब बूँदों की झडी 
ऐसे समय तुम रूबरू बारिश लपेटे हो खडी 
तुम ओंस में भीगी हुई जैसे कमल की पंखुडी 
रोकू, संभालू, जो करू.. है दिल फिसलने की घडी 

भीगी लटों से हैं टपकती मोतियों की ये लडी 
ये ठंड से कांपता बदन, पर है नजर में फुलझडी 
पलखें झपकती ही नही, तुम पर निगाहें जो जडी 
रोकू, संभालू, जो करू.. है दिल फिसलने की घडी 

गुस्ताखियाँ गर हो गयी, तो दोष ये किसका कहे ? 
मेरा? तुम्हारा? इश्क? या बदमाश बारिश का कहे ? 
ऐसे न उतरेगी, मुझे जो रूप की मदिरा चढी 
रोकू, संभालू, जो करू.. है दिल फिसलने की घडी 

- अनामिक 
(२७/०७/२०१७, २१-२३/०८/२०१८)

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