न जाने, गलत या सही जा रही है
भवर, आँधियाँ, बाढ, सूखा, बवंडर
सितम मौसमों के सही जा रही है
उछलकर, गरजकर, कभी शांत बहकर
बिना लब्ज सब कुछ कही जा रही है
पसंद की सभी मंजिलों को भुलाकर
न चाहा जहा, ये वही जा रही है
गलत ही सही, बस यही है तसल्ली
रुके बिन कही ना कही जा रही है
- अनामिक
(१४-२९/०९/२०१६)
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