01 सितंबर 2016

दिल-दिमाग की जंग

दिल-दिमाग की जंग में आखिर होगी किसकी जीत ?
इसी कश्मकश में रहता हूँ, जबसे हुई है प्रीत                 ॥ धृ ॥

दिल नादानी की फिराक में, दिमाग वैसे शरीफ है
दिल गुम है सपनें बुनने में, दिमाग सच से वाकिफ है
दिमाग देने लगे नसीहत, पर दिल गाए गीत                 ॥ १ ॥

दिल बोले, "उसके आगे से गुजर, शुरू कर आँखमिचोली"
दिमाग बोले, "अनदेखा कर, कदम मोड ले, बदल ले गली"
दिल बोले, "उसे देखकर मुस्कुरा जरा, पल जाए बीत"        ॥ २ ॥

दिल बोले, "बातें कर उससे", दिमाग बोले, "चुप्पी धर"
दिल बोले, "कुछ भेज संदेसा", दिमाग बोले, "जरा सबर कर"
दिल पूछे, "इतना सोचा तो कैसे मिलेगा मीत ?"            ॥ ३ ॥

दिल जलता रहता है भीतर, दिमाग कसक बुझाता है
दिल फुसलाता, उकसाता है, दिमाग फिर समझाता है,
"जो करता है पहल, उसीकी मात.. यही है रीत"             ॥ ४ ॥

- अनामिक
(२५/०८/२०१६ - ०१/०९/२०१६)

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