19 सितंबर 2016

आखिरकार

इंतजार में थी बहार के, डाली ब्याकुल आज कट गयी
कब से इक दरबार में पडी अर्जी आखिरकार फट गयी ॥ धृ ॥

अर्सों से जो अडी हुई थी, धूल चाटती पडी हुई थी
शायद कूडेदान में कही
जिनके थे दस्तखत जरूरी, जिनकी थी मिलनी मंजूरी
उनको इसकी भनक तक नही

दीमक को ही लगी सुहानी, उस अर्जी में लिखी कहानी
सौ टुकडों के बीच बट गयी
अर्जी आखिरकार..                                      ॥ १ ॥

अश्कों की स्याही से उमडे, वो बिखरे शब्दों के टुकडें
कैसे भला जुटा पाऊ ?
उनसे लिपटी सब यादों का, अरमानों का, फर्यादों का
कैसे बोझ उठा पाऊ ?

शायद अंत यही था मुमकिन, बुरा हुआ या अच्छा, लेकिन
इक झूठी उम्मीद छट गयी
अर्जी आखिरकार..                                      ॥ २ ॥

- अनामिक
(१७-१९/०९/२०१६)

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