07 सितंबर 2016

कभी न सोचा था

फिजूल थे जो लम्हें, उनकी अब खल रही कमी है क्यों ?
जाल लगे थे जो धागें, अब लग रहे रेशमी हैं क्यों ?

कभी न सोचा था, जो किस्सें कभी याद भी आएंगे
आज उन्ही बातों की दिल में इतनी भीड जमी है क्यों ?

अपनी धुन में मस्त मगन सी बेफिकर चल रही थी जो
आज किसी अंजान मोड पे यूँ जिंदगी थमी है क्यों ?

कुछ न मायने रखते थे जो, गैरों में जिनकी गिनती थी
आज बेसबब ही पलखों पे उनके लिए नमी है क्यों ?

- अनामिक
(२६/०८/२०१६ - ०२/०९/२०१६)

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