31 मार्च 2015

हमें भी आज जीने दो

कदम​ ​तो डगमगाएंगे, नशे में चल रहे जो हम
निगाहें​ लडखडाएंगी, जवाँ मदहोश है आलम
जिएंगे कब तलक​ घुटकर, मचलकर आज जीने दो
रहेंगे​ कब तलक प्यासे, छलकते जाम पीने दो
हमें भी आज जीने दो, हमें भी आज पीने दो​ ॥ धृ ॥

"​कहेंगे लोग क्या?" ये सोच डर डर कर जिए हम तो
​उसूलों में, रिवाजों में जकडकर रह गए हम तो
​मगर इन बेडियों का बोझ अब से ना सहेंगे हम
मनमौजी हवा बनकर जहा मर्जी बहेंगे हम
बगावत की सुई से सब अधूरे ख्वाब सीने दो
रहेंगे​ कब तलक प्यासे, छलकते जाम पीने दो
हमें भी आज जीने दो, हमें भी आज पीने दो​ ॥ १ ॥

शराफत​ की लकीरों में यूँ उलझे, ना सुलझ पाए​
​सुनी​ इसकी, सुनी उसकी, न खुदकी ही समझ पाए
मगर अब से दबे दिल की पुकारें ही सुनेंगे हम
​करेंगे खूब नादानी, अजब राहें चुनेंगे हम
रंगीली शरबती बरसात हर-दिन, हर-महीने दो​
रहेंगे​ कब तलक प्यासे, छलकते जाम पीने दो
हमें भी आज जीने दो, हमें भी आज पीने दो​ ॥ २ ॥

- अनामिक

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