29 मार्च 2015

क्यों

जाने क्या ये हुआ अचानक ? क्यों कुदरत ने बदले तेवर ?
कल तक था इक हसीं नजारा, आज दिखे कुछ और ही मंजर
क्यों दुनिया की सब चीज़ों का पल में उतर गया है नूर ?
शायद इनको पता चला है.. की तुम चले गए हो दूर... ॥ धृ ॥

क्यों न मोगरे में है खुशबू ? क्यों गुलाब में खिले न रंग ?
क्यों साहिल पे सन्नाटा है ? दर्या में उठते न तरंग
क्यों कोयल के गीत हुए चुप ? क्यों न पसारे पंख मयूर ?
शायद इनको पता चला है.. की तुम चले गए हो दूर... ॥ १ ॥

क्यों न सितारों में है जगमग ? क्यों न चाँद से बरसे रेशम ?
क्यों न बची बदरा में बूँदे ? क्यों छाया पतझड का मौसम ?
क्यों गुम है सूरज की रौनक ? क्यों अंधियारा करे गुरूर ?
शायद इनको पता चला है.. की तुम चले गए हो दूर... ॥ २ ॥

क्यों सपनों के महमानों ने पलखों का घर छोड दिया है ?
क्यों रूठी निंदियारानी ने रातों से मुह मोड लिया है ?
क्यों हाथों की रेखाओं के आगे किस्मत है मजबूर ?
शायद इनको पता चला है.. की तुम चले गए हो दूर... ॥ ३ ॥

- अनामिक
(११-१५/०३/२०१५)

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