चुपके से इक आँधी आई, हलकी सी भी हुई न आहट
आँख लगी तब सन्नाटा था, नींद खुली तो बस गडगडाहट
दबे पाँव से आकर इसने तहस-नहस कर दिया आशियाँ
चंद दुलारी चीज़ों को भी समेटने का समय ना दिया
जितना था, सब बहा ले गयी, छोड गयी आँखों में नदिया ॥ धृ ॥
कुछ चीज़ें थी, कुछ बातें थी
कुछ थी सुबहें, कुछ रातें थी
यादों की संदूकों में कुछ सुनहरे पलों के प्यालें थे
जिनमें गम के कडवे जाम भी शरबत से लगते थे मीठे
अरमानों की अलमारी में थी सपनों की शाल रेशमी
जिसे लपेटे कडी ठंड भी लगती थी उम्मीद की गर्मी
इक कोने में फडक रहा था, वो भी बुझ गया आस का दिया
जितना था, सब बहा ले गयी, छोड गयी आँखों में नदिया ॥ १ ॥
जाने कितना समय लगेगा, बिखरा सा घर निखारने को
चकनाचूर हौसले की सब दर-दीवारें सवारने को
मन से मलबा निकालने को, फिर से तिनकें बटोरने को
कहा मिलेगी तब तक इक छत, सहमी रातें गुजारने को
हिम्मत की बुनियाद धँसी जो, रचने लग जाएँगी सदियाँ
जितना था, सब बहा ले गयी, छोड गयी आँखों में नदिया ॥ २ ॥
- अनामिक
(०४,१६/०३/२०१५)
आँख लगी तब सन्नाटा था, नींद खुली तो बस गडगडाहट
दबे पाँव से आकर इसने तहस-नहस कर दिया आशियाँ
चंद दुलारी चीज़ों को भी समेटने का समय ना दिया
जितना था, सब बहा ले गयी, छोड गयी आँखों में नदिया ॥ धृ ॥
कुछ चीज़ें थी, कुछ बातें थी
कुछ थी सुबहें, कुछ रातें थी
यादों की संदूकों में कुछ सुनहरे पलों के प्यालें थे
जिनमें गम के कडवे जाम भी शरबत से लगते थे मीठे
अरमानों की अलमारी में थी सपनों की शाल रेशमी
जिसे लपेटे कडी ठंड भी लगती थी उम्मीद की गर्मी
इक कोने में फडक रहा था, वो भी बुझ गया आस का दिया
जितना था, सब बहा ले गयी, छोड गयी आँखों में नदिया ॥ १ ॥
जाने कितना समय लगेगा, बिखरा सा घर निखारने को
चकनाचूर हौसले की सब दर-दीवारें सवारने को
मन से मलबा निकालने को, फिर से तिनकें बटोरने को
कहा मिलेगी तब तक इक छत, सहमी रातें गुजारने को
हिम्मत की बुनियाद धँसी जो, रचने लग जाएँगी सदियाँ
जितना था, सब बहा ले गयी, छोड गयी आँखों में नदिया ॥ २ ॥
- अनामिक
(०४,१६/०३/२०१५)
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