जश्न था, महफिल भरी थी, सूरतें सब थी नयी
चल रहा था मैं अकेला, इक नजर टकरा गयी
वो अचानक यूँ मिले, तोहफा सुहाना मिल गया
इन लबों को मुस्कुराने का बहाना मिल गया
देख कर इक-दूसरे को फूल चेहरों के खिले
वक्त के जालें छटे, सब घुल गए शिकवे-गिले
याद में गुमनाम लम्हों का ठिकाना मिल गया
वो मिले तो मुस्कुराने का बहाना मिल गया
बात फिर छिडती गयी, कडियाँ नयी जुडती रही
बेसबब छीटें हँसी की हर घडी उडती रही
यूँ लगा, खामोश लफ़्ज़ों को तराना मिल गया
वो मिले तो मुस्कुराने का बहाना मिल गया
थी शिकायत कर रही सुइयाँ घडी की बेसबर
अलविदा कहना पडा, मुस्कान लब पर थी मगर
था सुकूँ, संजोग से साथी पुराना मिल गया
वो मिले तो मुस्कुराने का बहाना मिल गया
- अनामिक
(०१-०६/०१/२०१५)
चल रहा था मैं अकेला, इक नजर टकरा गयी
वो अचानक यूँ मिले, तोहफा सुहाना मिल गया
इन लबों को मुस्कुराने का बहाना मिल गया
देख कर इक-दूसरे को फूल चेहरों के खिले
वक्त के जालें छटे, सब घुल गए शिकवे-गिले
याद में गुमनाम लम्हों का ठिकाना मिल गया
वो मिले तो मुस्कुराने का बहाना मिल गया
बात फिर छिडती गयी, कडियाँ नयी जुडती रही
बेसबब छीटें हँसी की हर घडी उडती रही
यूँ लगा, खामोश लफ़्ज़ों को तराना मिल गया
वो मिले तो मुस्कुराने का बहाना मिल गया
थी शिकायत कर रही सुइयाँ घडी की बेसबर
अलविदा कहना पडा, मुस्कान लब पर थी मगर
था सुकूँ, संजोग से साथी पुराना मिल गया
वो मिले तो मुस्कुराने का बहाना मिल गया
(०१-०६/०१/२०१५)
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