09 जनवरी 2015

सदियाँ गुजर रही हैं

इंतजार ही इंतजार है, लम्हें सिमट रहे हैं
रुकी कहानी है कबसे, बस पन्नें पलट रहे हैं
लाख जुटाऊ सब्र, वक्त की लडियाँ बिखर रही हैं
राह तुम्हारी तकते तकते सदियाँ गुजर रही हैं ॥ धृ ॥

रोज खयालों के गुलशन में
ढूँढू खुशबू, रंग तुम्हारे
या फिर सपनों के अंबर में
भरू उडानें संग तुम्हारे
कितना भी सहलाऊ दिल को, यादें उभर रही हैं
राह तुम्हारी तकते तकते सदियाँ गुजर रही हैं ॥ १ ॥

काश तुम्हारे आँगन में
पंखुडियाँ मेरे नाम की गिरे
काश तुम्हारे मन को छू ले
मेरे जज़बातों की लहरें
प्यास तुम्हारी मोती बन आँखों में उतर रही है
राह तुम्हारी तकते तकते सदियाँ गुजर रही हैं ॥ २ ॥

- अनामिक
(०६/०५/२०१४ - ०८/०१/२०१५)

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