04 दिसंबर 2016

ठीक है

रचता गया मैं तारिफों के फूल उसकी राह में
उसने कहा बस, "ठीक है"
लिखता गया कितने सुहाने गीत उसकी चाह में
उसने कहा बस, "ठीक है"

उसके लबों मुस्कान लाने की सदा की कोशिशें
मांगे बिना करता रहा पूरी सभी फर्माइशें
जो बन सका, सब कुछ किया उसकी फिकर, पर्वाह में
ना लब्ज कम पडने दिए उसकी स्तुती, वाह-वाह में
उसने कहा बस, "ठीक है"

उसकी हथेली में सजा दू चाँद-तारें भी अगर
रुख मौसमों का मोडकर ला दू बहारें भी अगर
वो बस कहेगी, "ठीक है"
मैं तितलियों से रंग चुराकर जिंदगी उसकी भरू
मैं बिजलियों को तोड उसके पैर की पायल करू
वो बस कहेगी, "ठीक है"

वो है अगर यूँ बेकदर, सब जानकर भी बेखबर
मैं सोचता हूँ, बस हुआ.. अब मोड लू अपनी डगर
मैं भी कहू अब, "ठीक है"

- अनामिक
(३०/११/२०१६ - ०४/१२/२०१६)

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