सूरज की लाली में लिपटे गगन-तले इक सांझ गुजारे
लहरों का हो शोर सुरीला, और पवन की चंचल हलचल
नर्म रेत की चादर ओढे इत्मिनान से बैठे कुछ पल
घुले साँस में साँस, पहन ले हाथों में हाथों के कंगन
इक-टुक देखे दूर क्षितिज पे, धरती और अंबर का मीलन
कंधे के सिरहाने मेरे चैन-सुकूँ से तुम सो जाओ
फिक्र करो ना इस पल की, बस उजले कल के ख्वाब सजाओ
भीनी सी मुस्कान तुम्हारी देख देख मैं दिल बहलाऊ
जुल्फ-हवा का खेल निहारू, हकले से माथा सहलाऊ
तुम्हे छेडती शरारती लट मैं उंगली से दूर हटाऊ
नींद टूटने दू न तुम्हारी, भला जागते उम्र बिताऊ
घने बादलों में सपनों के यूँ ही तैरते रहे सांझ-भर
आए-जाए सूरज-चंदा, दुनिया की कुछ भी न हो खबर
- अनामिक
(२३/०४/२०१५ - २२/०३/२०१६)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें